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तत्त्वनिर्णयप्रासादका पालक होनेसें, अरिष्टनेमि है. ऐसा गरुड हमको कल्याण निरुपद्रव करो.। यह भाष्यकी व्याख्या, असमंजस मालुम होती है. क्योंकि, प्रथम तो, गरुड पक्षी, तिर्यंचजाति है; सो कल्याण, शांति, निरुपद्रव, कैसे कर सकता है?
पूर्वपक्षः-गरुड विष्णुका वाहन है, इसवास्ते बडा सामर्थ्यवाला है; सो कल्याण शांति कर सकता है.
उत्तरपक्षः-तब तो वाहनकी स्तुतिसें विष्णुकीही स्तुति करनी उ. चित थी. क्योंकि, वो तो, कदापि सर्व सामर्थ्यवाला होनसें कल्याण शांति कर सकता है, परंतु पक्षी नही. तथा अरिष्टनेमिरूप विशेषण रखके जो अर्थ चक्रकी नेमिका करा है, सो भी, अघटितही मालुम होता है. क्योंकि, विष्णुआदि अनेक पुरुष रक्षक माने हैं, तिन सर्वको छोडके उपमामें लोहमय नेमिको जा पकडा! जैसे कोइ कहें कि, सुवर्ण कैसा पीत है, जैसा सरसव शणका पुष्प तैसा है. यह तो उपमा ठीक है. परंतु जो कोइ कहे कि, सुवर्ण ऐसा पीत. है, जैसा निःकेवल स्तनपान करनेवाले बालकका पुरीष पीत होता है, यह उपमा अघटित है. ऐसाही चक्रकी नेमिका विशेषण है; इसवास्ते यह सत्यार्थ नही मालुम होता है.
पूर्वपक्षः-आप इसका अर्थ कैसे कर सकते हैं ?
उत्तरपक्षः-अरिष्टनेमिः यह विशेष्य है, और तायः यह विशेषण है; कहीं कहीं विशेष्य, विशेषण, आगे पीछे भी होते हैं. । तब तो, तायःसमान अरिष्टनेमि, हमको कल्याण-शांति करो। तहां अरिष्टनेमिपदका यह अर्थ है.। ।धर्मचक्रस्य नेमिवन्नोमिः।' धर्मरूप चक्रकी नेमिसमान, जैसे नेमि चक्रकी रक्षा करे हैं-बिगडने नहीं देवे हैं, तैसेंही भगवान् बावीसमेधर्म अरिष्ट अहिंसा निरुपद्रवरूप तिसके पालनेवास्ते नेमिसमान, सो कहिये अरिष्टनेमिः; सो अरिष्टनेमि, तायो-गरुडसमान है.। जहां जहां गरुड संचार करता है, तहां तहां सादिकोंके विषादि उपद्रवोंका नाश होता है, तैसेंही अरिष्टनेमि बावीसमा अरिहंत विचरता है, तहां इति
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