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________________ द्वात्रिंशस्तम्भः। शरीर करीषांग है, तिसकरकेही तपरूप अग्निको दीपन करिये हैं, तद्भावभावित होनेसें तिसको. ज्ञानावरणीयादि आठ कर्म, इंधन है, तिस कर्मकोही तप करके भस्मीभाव करनेसें. जे संयम योग हैं, संयमके व्यापार हैं, वही शांतिपाठ अध्ययनपद्धतिरूप हैं, सर्व प्राणियोंके विघ्नोंको दूर करनेवाले हानेसें. जीवहिंसारहित होनेसें, जो होम, सर्वऋषियोंको प्रशस्त है, तिस होमकरके तपरूप अग्निको, मैं तर्पण करता हूं.। यह भावयज्ञ अरिहंतके उपदेशसेंही प्रकट हुआ है, अन्यसें नही. यह आश्चर्य है. । (इमा) इमानि (विश्वा) विश्वानि सर्वाणि (भुवनानि) भूतानि और जो इन सर्वभूतजीवोंको (सर्वतः) सर्वओरसे (आवभूव) यथार्थस्वरूप कथन करनेसें प्रकट करता हुआ (सनेमि ) सो नेमि बावीसमा जिनतीर्थंकर * (राजा) अपने घातिकर्मचारके नष्ट करनेसें, और केवलज्ञानादि शुद्ध स्वरूपसे दीपता हुआ ( परियाति) सर्वओरसें अप्रतिबद्ध विहारी होके जाता है-देशोमें विचरता है. कैसा है नेमि (विद्वान्) सर्वज्ञ है, मेरे कथन करेधर्मका यह रहस्य है, और इस हेतुसे मैनें जगतको उपदेश करना है, ऐसे अपने अधिकारको जानता है. तथा (प्रजां-पोषं-वर्धयमानः) प्रकर्षेण जायंते कर्मवशवर्तिनः प्राणिनोस्मिन् जगति इति प्रजा जीवसंघात इत्यर्थः तिसकी दयाके उपदेशसें, और धर्मकी पुष्टिकी वृद्धि करनेवाला (अस्मे ) अस्मै नेमये-इस नेमिको हुत होवे अर्थात् आहुति होवे। इति ॥ तथा तैत्तिरीय आरण्यकके प्रथम प्रपाठकके प्रथमानुवाककी आदिमें शांतिकेवास्ते मंगलाचरण करा है, तिसमें ऐसा पाठ है। स्वस्तिनस्तायोअरिष्टनेमिः।' इसका भाष्यकारने ऐसा अर्थ करा है.। अरिष्टम् अहिंसा तिसको नेमीस्थानीयः नोमिसमान, जैसें लोहमयी नेमि काष्ठमय चक्रके भंगाभावकेवास्ते होती है, अर्थात् चक्रकी रक्षा करती है; ऐसेंही यह तायः-गरुड भी सादिकोंकी करी हुई हिंसाको निवारण करके, तिस * नमिर्नेमिः पार्थो वीरः इतिश्रीमद्धेमचंद्रविरचितायामभिधानचिंतामणिनाममालायाम् ॥ तथा शब्दार्थभानुके १९५ पत्रोपारि । नेमिः (पु.) जिनविशेष, एक जिनका नाम ॥ .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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