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________________ ४९२ तत्त्वनिर्णयप्रासादवासनागुरुसामग्री विभवो देहपाटवम् ।। संघश्चतुर्विधो हर्षो व्रतारोपे गवेष्यते ॥१॥ वरकुसुमगंधअक्खयफलजलनेवजधूवदीवेहिं ॥ अहविहकम्ममहणी जिणपूआ अहहा होइ ॥२॥ इत्याचार्यश्रीवर्द्धमानसूरिकृताचारदिनकरस्य गृहिधर्मप्रतिबद्धपंचदशमवतारोपसंस्कारस्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचितोबालावबोधस्समाप्तस्तत्समाप्तौ च समाप्तोयं त्रिंशः स्तंभः ॥ ३०॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरीश्वरविरचितेतत्वनिर्णयप्रासादग्रंथेपंचदशमवतारोपसंस्कारवर्णनोनामत्रिंशःस्तंभः ॥ ३०॥ ॥अथैकत्रिंशस्तम्भारम्भः॥ पूर्वोक्त २७।२८।२९।३०। स्तंभोंमें पंचदशम (१५) व्रतारोपसंस्कारका वर्णन किया, अब इस इकतीस (३१) स्तंभमें षोडशम (१६) अंत्यसंस्कारका वर्णन करते हैं. ॥ श्रावक यथावृत् वृत्तोंकरके निज भवको पालके कालधर्मके प्राप्त हुए, उत्कृष्ट प्रधान आराधना करे, तिसका विधि यह है.। जिन अरिहंतोंके कल्याणक स्थानोंमें निर्जीव शुचि पवित्र स्थंडिल-जगामें, वा अरण्यमें, वा अपने घरमें, विधिसे अनशन करना.। तहां शुभस्थानमें ग्लानकोपर्यंत आराधना करावनी । तथा अवश्यमेव अमुकवेला निकट मरण होवेगा ऐसें ज्ञानके हुए, तिथिवारनक्षत्रचंद्रबलादि न देखना । तहां संघका मीलना करना । गुरु, ग्लानको जैसें सम्यत्क्वारोपणमें तैसेंही नंदि करे. । नवरं इतना विशेष है. सर्व नंदि देववंदन कायोत्सर्गादि पूर्वोक्त विधि 'संलेहणा आराहणा' इस अभिलापकरके करावणा. और वैयावृत्त्य कर कायोत्सर्गानंतर। ___“॥ आराधना देवता आराधनार्थ करेमि काउस्सगं अन्नथ्थउससिएणं० जाव-अप्पाणं वोसिरामि॥” कहके कायोत्सर्ग करे. कायोत्सर्गमें चार लोगस्स चितवन करना, पारके आराधना स्तुति कहनी..। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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