SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 595
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९० तत्त्वनिर्णयप्रासादपढना. ॥ जिस प्रतिमाका स्थानस्थितहीका स्नपन कराया जावे, तिसके वास्ते सर्वकुछ तहांही करना.॥ श्रीखंडकर्पूरकूरंगनाभिप्रियंगुमांसीनखकाकतुंडैः ॥ जगत्रयस्याधिपतेः सपर्याविधौ विदध्यात्कुशलानि धूपः॥१॥ इस वृत्तकरके सर्वपूष्पांजलियोंके बिचाले धूपोत्क्षेप करना, और शकस्तवपाठ पढना.॥ प्रतिमाविसर्जनं यथा ॥ “॥ॐ अहँ नमो भगवतेर्हते समये पुनः पूजां प्रतीच्छ स्वाहा॥" इति पुष्पन्यासेन प्रतिमाविसर्जनं ॥ __ “॥ ॐ हः इंद्रादयोलोकपालाः सूर्यादयो ग्रहाः सक्षेत्रपालाः सर्वदेवाः सर्वदेव्यः पुनरागमनाय स्वाहा ॥” इति पूष्पादिभिर्दिक पालग्रहविसर्जनम् ॥ तदपीछे ॥ आज्ञाहीनं क्रियाहीनं मंत्रहीनं च यत्कृतम् ॥ तत्सर्व कृपया देवाः क्षमंतु परमेश्वराः ॥ १ ॥ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ॥ पूजां चैव न जानामि त्वमेव शरणं मम ॥२॥ कीर्तिः श्रियो राज्यपदं सुरत्वं न प्रार्थये किंचन देवदेव ॥ मत्प्रार्थनीयं भगवत्प्रदेयं स्वदासतां मां नय सर्वदापि ॥३॥ इति सर्वकरणीयांते जिनप्रतिमादेवादिविसर्जनविधिः ॥ अहंदर्चनविधिमें भी ऐसेंही विसर्जन जानना.॥ इति लघुस्नात्रविधिः ॥ तदपीछे (गृहचैत्यपूजानंतर) बडे देवमंदिरमें जाकर, शक्रस्तपादिस्तोत्रोंकरके जिनराजकी स्तवना करके, और जिनराजका पूजन करके, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy