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________________ त्रिंशस्तम्भः। ॥आर्या ॥ कृश्नसितकपिलवर्णप्रकीर्णकोपासितांघ्रियुग्मसदा॥ श्रीक्षेत्रपाल पालय भविकजनं विघ्नहरणेन ॥१॥ “॥ ॐ क्षेत्रपाल इह० शेषं पूर्ववत्॥” इति क्षेत्रपालपूजनम् ॥१०॥ तदपीछे गंध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीपसें पूर्व कहे मंत्रोंसेंही जिनप्रतिमाकी पूजा करे. तदपीछे हाथमें वस्त्र लेके वसंततिलकावृत्तपाठ पढे.। यथा ॥ ॥ वसंततिलकावृत्त । त्यक्त्वाखिलार्थवनितादिकभूरिराज्यं निःसंगतामुपगतो जगतामधीशः॥ भिक्षुर्भवन्नपि स वर्मणि देवदूष्य - मेकं दधाति वचनेन सुरेश्वराणाम् ॥ १॥ यह पढके वस्त्र चढावे. ॥ इति वस्त्रपूजा ॥ तदपीछे नानाविध खाद्य, पेय, भक्ष्य, लेह्यसंयुक्त नैवेद्य, दो स्थानमें करके तिनसें एक पात्र जिनके आगे स्थापके, श्लोक पढे । यथा ॥ ॥ श्लोक ॥ सर्वप्रधानसद्भूतं देहिदेहिसुपुष्टिदम् ॥ अन्नं जिनाये रचितं दुःखं हरतु नः सदा ॥१॥ यह पढके जलचुलुककरके जिनप्रतिमाको नैवेद्य देवे. । तदपीछे दूसरे पात्रमें चुलुककरकेही, ग्रहदिक्पालादिकोंको श्लोक पढके नैवेद्य देवे. । श्लोको यथा ॥ भोभो सर्वेग्रहालोकपालाः सम्यग्दृशः सुराः॥ नैवेद्यमेतद्हन्तु भवंतो भयहारिणः ॥ १॥ स्नान करायाविना भी पूजामें जिनप्रतिमाको इसही मंत्रकरके नैवेद्य देना. ॥ तदपीछे आरात्रिक मंगलदीपक पूर्ववत । और शक्रस्तव भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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