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________________ तत्त्वनिर्णयप्रासादतियसासुरेहिं हविओ ते धन्ना जेहिं दिटोसि ॥९॥ ___ यह पढके कलशोंकरके जिनप्रतिमाको अभिषेक करे. । तदपीछे बडे छोटेके क्रमकरके सर्व पुरुष स्त्रियां भी गंधोदकोंकरके स्नात्र करे । तदपीछे अभिषेकके अंतमें गंधोदकपूर्ण कलश लेके वसंततिलकावृत्तपढे। यथा ॥ ॥ वसंततिलका ॥ संघे चतुर्विध इह प्रतिभासमाने श्रीतीर्थपूजनकृतप्रतिभासमाने। गंधोदकैः पुनरपि प्रभवत्वजस्रं स्नानं जगत्रयगुरोरतिपूतधारैः॥१॥ यह पढके जिनपादोपरि कलशाभिषेक करके स्नात्रनिवृत्ति करे. । तदपीछे पुष्पांजलि लेके वृत्त पढे । यथा ॥ ॥प्रहर्षिणी॥ इंद्राग्ने यम निर्ऋते जलेश वायो वित्तशेश्वर भुजगा विरंचिनाथ ।। संघद्याधिकतमभक्तिभारभाजः स्नाऽस्मिन् भुवनविभोः श्रीयं कुरुध्वम् ॥ १॥ यह पढके स्नात्रपीठके पास रहे कल्पित दिक्पालपीठऊपरि, पुष्पांजलिक्षेप करे. । तदपीछे प्रत्येक दिशामें यथाक्रमकरके दिक्पालोंको स्था. पन करे. । पीछे एकैक दिक्पालका पूजन करे । यथा ॥ ॥शिखरिणी ॥ सुराधीश श्रीमन् सुदृढतरसम्यक्त्ववसते। शचीकांतोपांतस्थितविबुधकोट्यानतपद ॥ ज्वलद्वजाघातक्षपितदनुजाधीशकटक । प्रभोः स्नात्रे विघ्नं हर हर हरे पुण्यजयिनाम् ॥ १॥ "॥ ॐ शक इह जिनस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २। इदं जलं गृहाण २। गंधं गृहाण२। पुष्पं गृहाण २। धूपं गृहाण २। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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