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________________ तत्त्वनिर्णयप्रासाद. यह पढके फिर पुष्पांजलिक्षेप करे. । पीछे पूर्वोक्त 'कर्पूरसिल्हा' वृत्तकरके धूपोत्क्षेप करे, और शकस्तव पढे । पीछे फिर पुष्पांजलि द्वाथमें लेके, दो काव्य पढे.॥ यथा॥ ॥ पृथिवीवृत्तम् ॥ न दुःखमतिमात्रकं न विपदां परिस्फूर्जितं । न चापि यशसां क्षितिर्न विषमा नृणां दुस्थता ॥ न चापि गुणहीनता न परमप्रमोद क्षयो । जिन्नार्चनकृतां भवे भवति चैव निःसंशयम् ॥ १॥ ॥ मंदाक्रांता ॥ एतत्कृत्यं परममसमानंदसंपन्निदानं । पातालोकः सुरनरहितं साधुभिः प्रार्थनीयम् ॥ सर्वारंभापचयकरणं श्रेयकां सं निधानं । साध्यं सर्वेविमलमनसा पूजनं विश्वभर्नुः ॥२॥ यह पढके फिर पुष्पांजलिक्षेप करे. । तदपीछे धूप हाथमें लेके पढे.। यथा ॥ ॥शार्दूल ॥ कर्पूरागरुसिल्हचंदनबलामांसीशशैलेयक। श्रीवासद्रुमधूपरालघुमृणैरत्यंतमामोदितः ॥ व्योमस्थप्रसरच्छशांककिरणज्योतिःप्रतिच्छादको । धूपोत्क्षेपकृतो जगत्रयगुरोस्सौमाग्यमुत्तंसतु॥१॥ ॥ आर्या ॥ सिद्धाचार्यप्रभृतीन पंच गुरून् सर्वदेवगणमधिकम् ॥ क्षेत्रे काले धूपः प्रीणयतु जिनार्चने रचितः॥२॥ यह पढके धूपोत्क्षेप करे.।शकस्तव पढे.॥ पीछे फिर पुष्पांजलि लेके ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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