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________________ त्रिंशस्तम्भः। ४७९ यह पढके पुष्पांजलिक्षेपण करे. ॥ इतिपुष्पांजलिक्षेपः ॥ ॥ इंद्रवज्रा ॥ कर्पूरसिल्हाधिककाकतुंडकस्तुरिकाचंदनवंदनीयः॥ धूपो जिनाधीश्वरपूजनेऽत्र सर्वाणि पापानि दहत्वजस्रम् ॥१॥ यह पढके सर्वपुष्पांजलियोंके बीचमें धूपोत्क्षेप करे. ॥ और शक्रस्तव पढे. ॥ तदपीछे जलपूर्ण कलश लेके, श्लोक और वसंततिलका पढे. ॥ यथा ॥ ॥ अनुष्टुप् ॥ केवली भगवानेकः स्वाहादी मंडनैर्विना ॥ विनापि परिवारेण वंदितः प्रभुतोर्जितः ॥ १ ॥ ॥ वसंततिलका ॥ तस्यशितुः प्रतिनिधिः सहजश्रियायः । पुष्पैर्विनापि हि विना वसनप्रतानैः ॥ गंधैर्विना मणिमयाभरणैर्विनापि। लोकोत्तरं किमपि दृष्टिसुखं ददाति ॥२॥ यह पढके प्रतिमाको कलशाभिषेक करे. ॥ इतिप्रतिमायाः कलशाभिषेकः ॥ पुष्प अलंकारादि उत्तारके, कलशाभिषेक करके, पीछे फिर पुष्पांजलि लेके, दो काव्य पढे.।। यथा ॥ ॥शार्दूलवृत्तम् ॥ विश्वानंदकरी भवांबुधितरी सर्वापदां कर्तरी । मोक्षाध्वैकविलंघनाय विमला विद्या परा खेचरी ॥ दृष्टया भावितकल्मषापनयने बडाप्रतिज्ञा दृढा । रम्याहत्प्रतिमा तनोतु भविनां सर्व मनोवांछितम् ॥१॥ ॥ आर्या ॥ परमतररमासमागमोत्थप्रसृमरहर्षविभासिसन्निकर्षा ॥ जयति जगति जिनेशस्य दीप्तिःप्रतिमा कामितदायिनी जनानाम् २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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