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________________ तत्त्वनिर्णयप्रासाद ॥ शार्दूल ॥ यद्विश्वाधिपतेः समस्ततनुभृत्संसारनिस्तारणे । तीर्थे पुष्टिमुपेयुषि प्रतिदिनं वृधि गतं मंगलम् ॥ तत् संप्रत्युपनीतपूजनविधौ विश्वात्मनामर्हतां । भूयान्मंगलमक्षयं च जगते स्वस्त्यस्तु संघाय च ॥ ४ ॥ इन चारों वृत्तोंकरके मंगल प्रदीप करे । पीछे शक्रस्तव पढे ॥ इतिजिनार्चनविधिः॥ अथ अतिशय करी अर्हद्भक्तिवाला कोइक श्रावक, नित्य, वा पर्वदिनमें, वा किसी कार्यांतरमें, जिनस्नात्र करनेकी इच्छा करे, तिसका विधि यह है। प्रथम स्नात्रपाठके ऊपर, दिपालग्रह अन्य दैवतपूजन वर्जके, पूर्वोक्त प्रकारकरके जिनप्रतिमाको पूजके, मंगलदीप वर्जित आरात्रिक करके, पूर्वोपचारयुक्त श्रावक, गुरुसमक्ष संघके मिले हुए, चार प्रकारके गीतवाद्यादि उत्सवके हुए पुष्पांजलि हाथमें लेके। __ नमो अरहताणं नमोर्हत्सिदाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः॥" यह पढके दो वृत्त (छंद) पढे.। यथा॥ ॥शार्दूलवृत्तम् ॥ कल्याणं कुलद्धिकारि कुशलं श्लाघार्हमत्यद्भुतं । सर्वाघप्रतिघातनं गुणगणालंकारविभ्राजितम् ॥ कांतिश्रीपरिरंभणं प्रतिनिधिप्रख्यं जयत्यहतां । ध्यानं दानवमानवैर्विरचितं सर्वार्थसंसिद्धये ॥ १ ॥ ॥ मालिनीवृत्तम् ॥ भुवनभविकपापध्वांतदीपायमानं । परमतपरिघातप्रत्यनीकायमानम् ॥ धृतिकुवलयनेत्रावश्यमंत्रायमानं । . जयति जिनपतीनां धानमत्युत्तमानाम् ॥ २॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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