SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 586
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिंशस्तम्भः। व्योमस्थप्रसरच्छशांककिरणज्योतिःप्रतिच्छादको ॥ धुपोत्क्षेपकृतो जगत्रयगुरोस्सौभाग्यमुत्तंसतु ॥१॥ ॥ आर्या ॥ सिद्धाचार्यप्रभृतीन पंच गुरून सर्वदेवगणमधिकम् ॥ क्षेत्रे काले धूपः प्रीणयतु जिनार्चने रचितः॥२॥ , यह पढके धुपोतक्षेप करे। शकस्तव पढे.॥पीछे फिर पुष्पांजलि लेके। __॥ वसंततिलका ॥ जन्मन्यनंतसुखदे भुवनेश्वरस्य । सुत्रामभिः कनकशैलशिरःशिलायाम् ॥ स्नानं व्यधायि विविधांबुधिकूपवापी । कासारपल्वलसरित्सलिलैः सुगंधैः ॥ १॥ ॥ इंद्रवज्रा ॥ तां बुद्धिमाधाय हृदीहकाले स्नानं जिनेंद्रप्रतिमागणस्य ॥ कुति लोकाः शुभभावभाजो महाजनो येन गतःसपंथाः ॥२॥ यह पढके पुष्पांजलिक्षेप करे । तदपीछे ॥ ॥ वृत्तपाठः॥ परिमलगुणसारसद्गुणाढया बहुसंसक्तपरिस्फुरहिरेफा ॥ बहुविधबहुवर्णपुष्पमाला वपुषि जिनस्य भवत्वमोघयोगा॥१॥ यह वृत्त पढके पोंसें लेके मस्तकपर्यंत जिनप्रतिमाको पुष्पारोपण करे. । पीछे 'कर्पूरसिल्हाधि०' इसकरके धूपोतक्षेप करे. । पीछे शक्रस्तव पढे । पीछे फिर पुष्पांजलि हाथमें लेके। ॥शार्दूल ॥ साम्राज्यस्य पदोन्मुखे भगवति स्वर्गाधिपैफितो। मंत्रित्वं बलनाथतामधिकृति स्वर्णस्य कोशस्य च ॥ बिभ्रद्भिः कुसुमांजलिर्विनिहितो भक्त्या प्रभोः पादयो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy