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________________ त्रिंशस्तम्भः । ४७३ तदपीछे पूग (सुपारी) जायफल आदि वा वर्त्तमान ऋतुके (मोसमी ) फल हाथ में लेके । ॐ अर्ह फुं । जन्मफलं स्वर्गफलं पुण्यमोक्षफलं फलं ॥ दद्याज्जनाच्चनेत्रैव जिनपादाग्रसंस्थितम् ॥ १ ॥ यह मंत्र पढके जिनपादाग्रे फल ढोवे. ॥ तदपीछे धूप लेके 1 ॐ अर्ह रं। श्रीखंडागरुकस्तूरीद्रुमनिर्यासंसंभवः ॥ प्रीणनः सर्व देवानां धूपोस्तु जिनपूजने ॥ १ ॥ यह पढ अनि धूपक्षेप करे. ॥ पीछे 'फूल लेके 1 ॐ अहँ । पंचज्ञानमहाज्योतिर्म्मयाय ध्वांतघातिने ॥ द्योतनाय प्रतिमायादीपो भूयात्सदार्हते ॥१॥ यह पढके दीपमध्ये पुष्प स्थापन करे. ॥ तदपीछे फुलोंको लेके । “॥ॐ अहँ भगवद्भयोर्हद्रयो जलगंधपुष्पाक्षतफलधूपदीपैः संप्रदानमस्तु ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रीयंतां प्रीयंतां भगवंतोर्हतस्त्रिलोकस्थिताः नामाकृतिद्रव्यभावयुताः स्वाहा ॥ " यह पढके फिर जिनपूजन करे. ॥ तदपीछे वासक्षेप लेके । "॥ ॐ सूर्य सोमांगारकबुधगुरुशुक्रशनैश्चरराहुकेतुमुखाग्रहाः इह जिनपादाग्रे समायांतु पूजां प्रतीच्छंतु ॥” ऐसें पढके जिनपाद नीचे स्थापित ग्रहोंके ऊपर, वा स्नानपट्टके ऊपर वासक्षेप करे. ॥ तदपीछे । "॥ आचमनमस्तु गंधमस्तु पुष्पमस्तु अक्षतमस्तु फलमस्तु धुपोस्तु दीपोस्तु ॥ " ऐसें पढके क्रमसें जल, गंध, पुष्प, अक्षत, ६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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