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त्रिंशस्तम्भः ।
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तदपीछे पूग (सुपारी) जायफल आदि वा वर्त्तमान ऋतुके (मोसमी )
फल हाथ में लेके ।
ॐ अर्ह फुं । जन्मफलं स्वर्गफलं पुण्यमोक्षफलं फलं ॥ दद्याज्जनाच्चनेत्रैव जिनपादाग्रसंस्थितम् ॥ १ ॥ यह मंत्र पढके जिनपादाग्रे फल ढोवे. ॥
तदपीछे धूप लेके 1
ॐ अर्ह रं। श्रीखंडागरुकस्तूरीद्रुमनिर्यासंसंभवः ॥ प्रीणनः सर्व देवानां धूपोस्तु जिनपूजने ॥ १ ॥
यह पढ अनि धूपक्षेप करे. ॥
पीछे
'फूल लेके 1
ॐ अहँ । पंचज्ञानमहाज्योतिर्म्मयाय ध्वांतघातिने ॥ द्योतनाय प्रतिमायादीपो भूयात्सदार्हते ॥१॥
यह पढके दीपमध्ये पुष्प स्थापन करे. ॥
तदपीछे फुलोंको लेके ।
“॥ॐ अहँ भगवद्भयोर्हद्रयो जलगंधपुष्पाक्षतफलधूपदीपैः संप्रदानमस्तु ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रीयंतां प्रीयंतां भगवंतोर्हतस्त्रिलोकस्थिताः नामाकृतिद्रव्यभावयुताः स्वाहा ॥ " यह पढके फिर जिनपूजन करे. ॥ तदपीछे वासक्षेप लेके ।
"॥ ॐ सूर्य सोमांगारकबुधगुरुशुक्रशनैश्चरराहुकेतुमुखाग्रहाः इह जिनपादाग्रे समायांतु पूजां प्रतीच्छंतु ॥” ऐसें पढके जिनपाद नीचे स्थापित ग्रहोंके ऊपर, वा स्नानपट्टके ऊपर वासक्षेप करे. ॥ तदपीछे ।
"॥ आचमनमस्तु गंधमस्तु पुष्पमस्तु अक्षतमस्तु फलमस्तु धुपोस्तु दीपोस्तु ॥ " ऐसें पढके क्रमसें जल, गंध, पुष्प, अक्षत,
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