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________________ ૪૭ર तत्त्वनिर्णयप्रासादऐसें मौन करके कहके भगवत्के चरणोपरि पुष्प स्थापन करे. । फिर भी जलाई फूलोसें पूजापूर्वक कहे. ॥ यथा ॥ ___“॥ स्वागतमस्तु सुस्थितमस्तु सुप्रतिष्ठास्तु ॥” तदधीछे फिर पुष्पाभिषेक करके। " ॥अय॑मस्तु पाद्यमस्तु आचमनीय मस्तु सर्वोपचारै पूजास्तु॥" इन वचनोंकरके वारंवार जिनप्रतिमाके ऊपर जलाई पुष्पारोपण करे। तदपीछे जल लेके। ॐ अर्ह वं। जीवनं तर्पणं हृद्यं प्राणदं मलनाशनं॥ जलं जिनार्चनेत्रैव जायतां सुखहेतवे ॥ १॥ यह मंत्र पढके जलकरके प्रतिमाको भिषेक और स्नपन (स्नात्र) करे.॥ तदपीछे चंदन कुंकुम कर्पूर कस्तूरी आदि सुगंध हाथ में लेके। ॐ अर्ह लं। इदं गंधं महामोदं बृहणं प्रीणनं सदा ॥ जिनार्चने च सत्कर्मसंसिद्धय जायतां मम ॥१॥ यह मंत्र पढके विविध गंधकरी जिनप्रतिमाको विलेपन करे.॥ तदपीछे पुष्पपत्रादि हाथमें लेके। . ॐ अर्ह क्षे। नानावर्ण महामोदं सर्वत्रिदशवल्लभं ॥ जिनार्चनेत्र संसिद्ध्यै पुष्पं भवतु मे सदा ॥१॥ यह मंत्र पढके जिनप्रतिमाके ऊपर सुगंधमय विविध वर्णके पुष्प चढावे.॥ तदपीछे अक्षत (चावल) हाथमें लेके। ॐ अर्ह तं। प्रीणनं निर्मलं बल्यं मांगल्यं सर्वसिद्धिदं । जीवनं कार्यसंसिद्धयै भूयान्मे जिनपूजने॥१॥ यह मंत्र पढके जिनप्रतिमाके ऊपर अक्षत आरोपण करे.॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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