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अर्थेकोनत्रिंशस्तम्भः। सर्व अक्षर अडसठ (६८) तिसका उपधान ऐसें है. ॥
नंदि, देववंदन, कायोत्सर्ग, क्षमाश्रमण, वंदनक, प्रमुख नमस्कारश्रुतस्कंधके अभिलापसें पूर्ववत् जाणना. और आभिमंत्रित वासक्षेप भी पूर्ववत् जाणना.। तहां पूर्वसेवामें एकभक्तके अंतरे उपवास पांच, एवं दिन ११, तहां प्रथम नंदिदिनमें एकभक्त, वा निविगइ, दूसरे दिन उपवास, तीसरे दिन एकभक्त, चौथे दिन उपवास, पांचमे दिन एकभक्त, छठे दिन उपवास, सातमे दिन एकभक्त, आठमे दिन उपवास, नवमे दिन एकभक्त, दशमे दिन उपवास, एकादशमे दिन एकभक्त. ऐसे द्वादशम तप पूर्व सेवामें करना. । तहां पंचपरमेष्ठि पदांकी वाचना नंदिविना भी देनी. शक्रस्तवका पढना, वासक्षेपपूर्वक तीन नमस्कारोंका पढना, सर्व वाचनायोंमें जाणना.। तहां श्रेणिवद्ध आठ आचाम्ल करने, ऐसें एकोनविंशात (१९) दिन. तदपीछे वीसमे दिन एकभक्त, इकवीसमे दिन उपवास, बावीसमे दिन एकभक्त, तेइवीसमे दिन उपवास, चौवीसमे दिन एकभक्त, पच्चीसमे दिन उपवास. । ऐसें अष्टम तप उत्तर सेवामें ।
तदपीछे चूलिकाकी वाचना ॥ एसो पंच यहांसें लेके हवइ मंगलं । इति नमस्कारस्योपधानं ॥
तदपीछे तिसकी वाचना, तिसका विधि यह है. ॥ पहिला सामाचारीका पुस्तक पूजना, पीछे मुखवस्त्रिकासें मुख ढांकके ऐर्यापथिकी (इरियावहियं) पडिक्कमके क्षमाश्रमणपूर्वक कहें. ॥
"॥ भगवन नमुक्कारवायणासंदिसावणियं वायणाले
वावणियं वासक्खेवं करेह । चेइयाइं च वंदावेह ॥" ऐसें नंदि करके छव्वीसमे दिनमें एकभक्त करें, वाचना देनी. चूलिकाके चारों पदोंके सर्व उपधानोंमें प्रतिदिन अव्यापार पौषध करना, सवेरे २ पौषध पारके पुनः २ (फिर२) नित्य पोषध ग्रहण करना, और नमस्कार सहस्र गुणना. ॥ इतिप्रथममुपधानम् ॥ १॥
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