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________________ ४४४ तत्वनिर्णयप्रासादअंगऊपर धारण करूं. इतने मात्र गीत, नृत्य, वाजंत्र, मुझको उपभोगवास्ते कल्पे. । ३५॥ इतिसप्तमव्रतम् ॥ वैरिका घात वैर लेना इत्यादिक आर्त रौद्र ध्यान अदाक्षिण्यताविषे पापोपदेशका देना, इनको वर्जु. । ३६ । अदाक्षिण्यताविषे हिंसाकारी गृहोपकरणादि देना तथा कामशास्त्रका पढना, जूया खेलना, मय पीना, इनको परिहरु. । ३७। हिंडोलेका विनोद, भक्त (भोजन), स्त्री, देश, और राजा, इनकी स्तुति, वा निंदा; पशु पक्षीका युद्ध, अकालमें नींद लेनी, संपूर्ण रात्रिमें सोना, । ३८ । इत्यादि प्रमादस्थानक, अनर्थादंडनामक गुण व्रत में वर्जु. । इत्यष्टमव्रतम् ॥ एक वर्षमें इतने सामायिक करूं. । इतिनवमव्रतम् ॥ इतने योजन मेरेको दिन, वा रात्रिमें दशोदिशायोंमें जाना कल्पे. । इतिदशमव्रतम्। एक वर्षमें इतने पौषध करु. । इत्येकादशव्रतम् ॥ साधुयोंको संविभाग भोजन वस्त्र आदिकसे करूं. । ४० । प्रथम यतिको देके और नमस्कार करके पीछे आप पारणा करूं; जेकर सुविहित साधुयोंका योग न होवे तो, दिशावलोकन करके भोजन करूं. ॥४१॥ इतिद्वादशवतम् ॥ ___ यह द्वादश व्रतरूप श्रावकधर्म, पूर्वोक्त विधिसें पालु, विना छाण्या जलका पान और स्नान, मरणांतमें भी न करूं. । ४२ । कंदर्प, दर्प, थूकना, सोना, चार प्रकारका आहार करना, विकथा, कलह, इत्यादि जिनमंडपमें वर्जुः । ४३ । अमुक महागच्छमें, अमुक गुरु सूरिके संतानमें,अमुकके शिष्यके पास, अमुक सूरिके पादांतमें। ४४ । अमुक संवत्सरमें, अमुक मासमें, अमुक पक्षमें, अमुक तिथिमें, अमुक वारमें, अमुक नक्षत्रमें, अमुक नगरमें। ४५ । अमुकका पुत्र, अमुक नामका श्रावक, यहां गृहस्थधर्म ग्रहण करता है. अमुककी पुत्री, अमुककी भार्या, अमुक नामकी श्राविका, वा व्रत ग्रहण करती है. । ४६। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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