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अष्टाविंशस्तम्भः कर्ममें भोगोपभोगमें, खरकर्ममें, पंदरा कर्मादानमें, दुप्पोल आहार अज्ञात फूल फल इनको वर्जु. । २१ । पांच ऊंबर ५, चार महाविगइ ४, हिम १०, विष ११, करक १२, सर्व जातकी मट्टी १३, रात्रिभोजन १४, बहुवीजा १५, अनंतकाय १६, संधान (आचार) १७. । २२ । घोलवडां (विदल) १८, वृंताक १९, अज्ञात फल फूल २०, तुच्छ फल २१, और चलितरस २२, येह बावीस वस्तुयोंको वर्जु. । २३ । इनको . वर्जके अन्य फल फूल पत्रमेसें अमुक अमुक प्राणांतमें भी, भक्षण न करूं. २४ । इतने मात्र प्रासुक अनंतकी मुझको जयणा होवे, इतने अपक्क फल और अखंडित भी भक्षण न करूं.।२५। आ जन्मतांइ इतनी सञ्चित्त वस्तुयों मेरेको भक्षण करने योग्य है, इतने पुष्टिकारक द्रव्य, और इतने व्यंजन शाकादि मुझको कल्पे; तथा घृत, दुग्ध, दहि प्रभृति-। २६ । इतनी विगइयां मुझको कल्पे. इतने पियादे, इतने गज, इतने तुरग और इतने प्रधान रथोंकी मुझको जयणा होवे. । २७। इतने पूगफल (सुपारी), इतने लवंग, इतने पत्र, इतने एलाफल (इलायची) जायफल आदि मेरेको नित्य इतने प्रमाण कल्पे. । २८ । सौत्र, कौशेय, औषण, ताण, इन चार प्रकारके वस्त्रोंमें भी इतने वस्त्र पहिरने मुझको कल्पे; और इतनी जातिके फूल मेरे अंगके भोगवास्ते कल्पे. । २९ । आसंदी, सिंहासण, पीढी, पट्टे, चौकीयां, पल्लंक, तुलिका ( तूलाई ) और खाट आदि, येह सर्व इतने प्रमाण मुझको कल्पे. । ३० । कर्पूर, अगर, कस्तूरी, श्रीखंड, कुंकुमादि इतने मात्र मेरे अंगके लेपवास्ते कल्पे; और पूजामें जयणा. । ३१ । इतनी नारीयां मेरे संभोगमें इतने कालमात्र, इतने घडे, छाणे हुए जलके और प्रासुक जलके मेरेको स्नानवास्ते कल्पे. । ३२ । इतनी वार दिनमें इतनी जातिके तेल अभ्यंग (मर्दन) वास्ते, इतने प्रकारके भात रोटी आदिक भोजन, और दिन में इतनी बार भोजन करना. । ३३ । यह सच्चित्तादिका भोग परिभोग जावजीवतांइ है, इनका भी फेर प्रमाण दिनदिनमें करूं. * । ३४ । इतने मात्र मणि, कनक, रूपा, मोती भूषण,
* दिन २ में जो प्रमाण करना है, सो दशम देसावकाशिकव्रतांतर्गत जाणना. ॥
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