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છછર
तत्त्वनिर्णयप्रासाद___ कन्या आदि पांच प्रकारका मृषावाद, नियमकरके वर्जता हुं. । इतिद्वितीयव्रतम् । ___ जिससें चोर नाम पडे, और राजदंड होवे, ऐसा धन वर्जु, अर्थात् चोरी वर्जु. । इतितृतीयव्रतम् ।
दो करण तीन योगसें देवतासंबंधि, एकाविध त्रिविधं करी तिर्यंच संबंधि मैथुनका नियम करता हुं. । ९ । अनुभव करके स्तंभसमान ब्रह्मव्रतको अपने मनमें धारण करूं, और जावजीव मनुष्यसंबंधि मैथुन कायाकरके वर्जु. । १०। परनारीको, और परपुरुषको (स्त्री ब्रतग्राहिता आश्रित) वर्जु. इनके उपरांत अन्यकी मुझको जयणा. । इतिचतुर्थव्रतम् । __ अथ च नव प्रकारके परिग्रहमें परिग्रहकी संख्याका प्रमाण यह है. ।११। इतने मात्र रूप्यक, इतने द्रम्म, तिनसे वस्तुका ग्रहण करना, इतने मात्र गिणतिमें । १२ । इतने गिणतिमें रूप्यक, यह गणिमवस्तुका ग्रह ण है. ॥ तोलमें इतनी वस्तु और मापसें इतनी वस्तु । १३ । हाथ अं. गुलसें मेय वस्तुका इतने प्रमाण मात्रसें मुझको संग्रह करना कल्पे तथा दृष्टि से देखके जिनका मोल करा जावे ऐसे पदार्थ इतने रूपइ. योंके मोलके रखने । १४ । इतनी खारीयां अन्नकी एक वर्षमें रखनी इतनी मुझको परिग्रहमें भूमि रखनी कल्पे; इतने पुर, इतने गाम इतनी हट्टां, इतने घर, और इतने प्रमाण क्षेत्र, मुझको कल्पे. । १५ इतने सेर, वा इतने तोले प्रमाण सोना, इतने मात्र रूपा, इतना कांसा इतना ताम्र (तांबा), इतना लोहा, इतना तरुया, इतना सीसा, अपने घरमें रखना. । १६ । इतने दास, इतनी दासी, इतने सेवक-नौकर और इतने दासचेटकोंकी संख्या मुझको रखनी कल्पे. । १७। इतने हाथी इतने घोडे, इतने बलद, इतने ऊंट, इतने गाडे, इतनी गौयां, इतन महिषीयां (भैंसां)। १८ । इतनी बकरीयां, इतनी भेडें, और इतने हल रखने मुझको कल्पे. और अमुक अमुक कर्मका मुझको नियम होवे. । १९ । इति पंचमव्रतम् ।
दसोंही दिशायोंमें अपने वशसें इतने योजन प्रमाण जावजीव गमन करना, और तीर्थयात्रामें जानेकी जयणा.। २० । इतिषष्ठव्रतम्।।
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