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तत्वनिर्णयप्रासादवैरीको मारना, चूरना है, अथवा किसीका भय है, जिस वास्ते शाधारण किये हैं.। अक्षसूत्र असर्वज्ञपणेका चिन्ह है, जो हाथमें माला धारण करे तो जाणिये कि, इसमें सर्वज्ञपणा नहीं है. यदि होवे तो, मणके विना गिण. तीकी संख्या जाणलेवे. अथवा तिससे अधिक बडा अन्य कोई है, जिसका वो जाप करता है. याद अन्य कोई नहीं है तो, जपमालासे किसका जाप करता है ? । कमंडलु अशुचिपणेका चिन्ह है, यदि हाथमें कमंडलु पाणीका भाजन देखीए तो, ऐसा जाणिये कि, यह अशुचि है. शौच करणेके वास्ते यह कमंडलु धारण करता है.। यत उक्तम् ।
स्त्रीसंगः काममाचष्टे द्वेषं चायुधसंग्रहः ॥
व्यामोहं चाक्षसूत्रादिरशौचं च कमंडलुः ॥ १॥ इन पूर्वोक्त दोषोंकरके जे कलंकित दूषित है, तथा निग्रहा०जिसके उपर रुष्टमान होवे, तिसको निग्रह (बंधनमरणादिक) करें, और जिसके ऊपर तुष्टमान होवे, तिसको अनुग्रह (राज्याविकके वर) देवें; तेदेवा. जे ऐसें रागादिकोंकरके दूषित हैं, वे देव, मुक्तिके हेतु नही होते हैं. ॥ ५॥
ऐसे पूर्वोक्त देव अपने सेवकोंको मोक्ष नही दे सकते हैं, सोही वात फिर कहते हैं. । नाट्यादृ० जे देव नाटकके रसमें मग्न हैं, अट्टाहास करते हैं, वीणा लेके संगीत गानादिक करते हैं, इत्यादि उपप्लव संसारकी चेष्टा तिनोंकरके जे विसंस्थुल निःप्रतिष्ठ अस्थिर है; लंभयेयुः--जे आपही ऐसे हैं, वे देव, अपने प्रपन्न आश्रित सेवकोंको शांतपद, संसार चेष्टारहित मुक्ति केवलज्ञानादिकपद, कैसे प्राप्त कर सकते हैं ! जैसे एरंडवृक्ष कल्पवृक्षकोतरें इच्छा नहीं पूर सकता है, यदि किसी मूढ पुरुषने एरंडको कल्पवृक्ष मान लिया तो, क्या वो कल्पवृक्षकोतरें मनोवांछित दे सकता है? ऐसेंही किसी मिथ्या दृष्टीने पूर्वोक्त दूषणोंवाले कुदेवोंको देव मान लिये तो, क्या वे देव परमेश्वर मोक्षदाता हो सकते हैं? कदापि नही हो सकते हैं. ॥ ६ ॥
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