SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 491
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ રૂટ तत्त्वनिर्णयप्रासादशूर योद्धा सूरमा, मोक्षाभिलाषी, कन्यासें तीनगुणी अधिक आयुवाला, इनको भी कन्या न देनी. तिसवास्ते दोनों अविकृत कुलोंका, और दोनों विकृत कुलवालोंका विवाहसंबंध योग्य है. तथा पांच शुद्धियां देखके वधूवरका संयोग करना, सोही दिखावे हैं. राशि १, योनि २, गण ३, नाडी ४ और वर्ग ५, येह पांच शुद्धियां दोनोंकी देखके वरवधूका संयोग करना.। कुल १, शील २, स्वामिपणा ३, विद्या ४, धन ५, शरीर ६ और वय ७, येह सातो गुण वरमें देखने. अर्थात् येह सात गुण वरमें देखके कन्या देनी. आगे जो होवे, सो कन्याका भाग्य है. गर्भसे आठ वर्षसें लेके इग्यारह वर्षतांइ कन्याका विवाह करना. * तिसके ऊपरांत रजस्वला होती है. तिसको राका भी कहते हैं. तिसका विवाह शीघ्र होना चाहिये. वरको पाकरके चंद्रवलके हुए, तुच्छ महोत्सवके भी हुए, विवाह करना उचित है. यतउक्तम् ॥ वर्षमासदिनादीनां शुद्धिं राकाकरग्रहे ॥ नालोकयेचंद्रबलं वरं प्राप्य विधापयेत् ॥१॥ * पुरुषका आठ वर्षसे लेके ८० वर्षके बीच २ विवाह होना चाहिये. क्योंकि, अस्सीवर्ष उपरांत प्रायः पुरुष शुक्ररहित होता है.। विवाह दो प्रकारके होते हैं, आर्यविवाह १, और पापविवाह २. । आर्य विवाहके चार भेद हैं. ब्राहयविवाह १, प्राजापत्यविवाह २, आर्षविवाह ३. और दैवतविवाह ४. ये चारों विवाह मातापिताकी आज्ञासें होनेसें लौकिक व्यवहारमें धार्मिक विवाह गिने जाते हैं. पापविवाहके भी चार भेद हैं. गांधर्वविवाह १, आसुरविवाह २, राक्षसविवाह ३, और पैशाच विवाह ४. ये चारों करनेसे स्वेच्छानुसार पापविवाह हैं.। * यह कथन प्रायः लौकिकव्यवहारानुसार है. क्योंकि, जैनागममें तो “ जोव्वणगमणमणुपत्ता' इतिवचनात्, जब वरकन्या योवनको प्राप्त होवे, तब विवाह करना. और 'प्रवचनसारोद्धार में लिख है कि, सोलो वर्षकी स्त्री, और पच्चीस वर्षका पुरुष, तिनके संयोगसें जो संतान उत्पन्न होवे, से बलिष्ठ होवे है. इत्यादि मूलागमसे तो बाललग्नका और वृध्धके विवाहका निषेध सिद्ध होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy