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________________ ३६० - तत्त्वनिर्णयप्रासाद__ इस वेदमंत्रकरके पंच परमेष्टिमंत्र पढता हुआ उपनेयके कंठमें जिनो पवीत स्थापन करे । पीछे उपनेय तीन प्रदक्षिणा करके 'नमोस्तु २' कहता हुआ, गुरुको नमस्कार करे. गुरु भी “निस्तारगपारगो भव" ऐसा आशीर्वाद कहे । तदपीछे गृह्यगुरु पूर्वाभिमुख होके, जिनप्रतिमाके आगे शिष्यको वामेपासे बैठाके, सर्व जगत्में सार, महा आगमरूप क्षीरोदधिका माखण, सर्ववांछितदायक, कल्पद्रुम कामधेनु चिंतामणिके तिरस्कारका हेतु, निमेषमात्र स्मरण करनेसें मोक्षका दाता, ऐसे पंचपरमेष्ठिमंत्रको गंधपुष्पपूजित शिष्यके दक्षिणकानमें तीनवार सुणावे पीछे तीनवार तिसके मुखसे उच्चारण करावे ॥ यथा ॥ “॥नमो अरिहंताणं । नमो सिद्धाणं । नमो आयरियाणं । नमो उवज्झायाणं । नमो लोए सव्वसाहणं ॥" पीछे उपनेयको मंत्रका प्रभाव सुणावे.॥ तद्यथा ॥ सोलससु अरकरेसु इकिकं अक्खरं जगुज्जोअं॥ भवसयसहस्स महणो जम्मि हिउ पंच नवकारो॥१॥ थभेइ जलं जलणं चिंतियमत्तो इ पंच नवकारो ॥ अरिमारिचोरराउलघोरुवसग्गं पणासेइ ॥२॥ एकत्र पंचगुरुमंत्रपदाक्षराणि । विश्वत्रयं पुनरनंतगुणं परत्र ॥ यो धारयत्किल तुलानुगतं ततोऽपि। वंदे महागुरुतरं परमेष्ठिमंत्रम् ॥ ३ ।। ये केचनापि सुखमाघरका अनंता । . उत्सर्पिणीप्रभृतयः प्रययुर्विवर्त्ताः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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