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________________ ३५८ तत्त्वनिर्णयप्रासादऐसें कहकर फिर “ नमोस्तु २” ऐसें कहता हुआ, गुरुके चरणों में पडे; गुरु भी. इस मंत्रको पढके उपनेयको चोटीसें पकडके खड़ा करे । मंत्रो यथा ॥ “॥ ॐ अहँ देहिन् निमग्नोऽसि भवार्णवे तत्कर्षति त्वां भगवतोर्हतःप्रवचनैकदेशरज्जुना गुरुस्तदुत्तिष्ठ प्रवचनादानाय श्रद्दधाहि अर्ह ॐ ॥” ऐसें पढके उपनेयको खडा करके अर्हत्प्रतिमाके आगे पूर्वाभिमुख खडा करे. तदपीछे गृह्यगुरु, त्रितंतुवर्तित-तीन तंतुकी वुणी, एकाशीति (८१) हाथ प्रमाण, मुंजकी मेखलाको अपने दोनों हाथोंमें लेके, इस वेदमंत्रको पढे.॥ “॥ॐ अर्ह आत्मन् देहिन ज्ञानावरणेन बद्धोऽसि दर्शनावरणेन बद्धोऽसि । वेदनीयेन बद्धोऽसि । मोहनीयेन बद्धोऽसि । आयुषा बद्दोऽसि । नाम्ना बद्धोऽसि । गोत्रेण बद्धोऽसि । अंतरायेण बद्धोऽसि । काष्टकेन प्रकृतिस्थितिरसप्रदेशैश्च बद्दोऽसि । तन्मोचयति त्वां भगवतोहतः प्रवचनचेतना तबुद्ध्यस्व मामुहः मुच्यतां तव कर्मबंधनमनेन मेखलाबंधेन अहं ॐ ॥" ऐसा पढके उपनयकी कटिमें नवगुणी मेखलाको बांधे। तदपीछे उपनेय ‘नमोस्तु २' कहता हुआ, गृह्यगुरुके पगोंमें पडे । मेखलाको एकाशी (८१) हाथपणा विप्रको एकाशीतंतुगर्भ जिनोपवीत सूचमकेवास्ते, क्षत्रियको चौपन (५४) हाथ तावत्प्रमाणतंतुगर्भ जिनोपवीत सूचनकवास्ते, और वैश्यको सत्ताइस (२७) हाथ तगर्भसूत्रसूचनकेवास्ते है। ब्राह्मणको नवगुणी क्षत्रियको छीगुणी, और वैश्यको त्रिगुणी, मेखला बांधनी । तथा मौंजी, कौपीन, जिनोपवीत, इनोंका पूजन, गीतादिमंगल, निशाजागरण, तिसके पूर्वदिनकी रात्रिमें करणा। मेखलाबंधनके पीछे फेर गृह्यगुरु, उपनेयके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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