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चतुर्विशस्तम्भः निष्परिग्रहेभ्यो नमः । दयालुभ्यो नमः । सत्यदादिश्यो नमः । निःस्पृहेभ्यो नमः। एतेभ्यो नमस्कृत्यायं प्राणी प्राप्तमनुष्यजन्मा प्रविशति वर्णक्रम अर्ह ॐ ॥” ऐसें वेदमंत्रका उच्चार करके फिर भी पूर्ववत् तीन २ प्रदक्षिणा करके चारों दिशामें युगादिदेव स्तवसंयुक्त शक्रस्तव पाठ करे । तिस दिनमें, जल जवान्न भोजन करके आचाम्लका प्रत्याख्यान उपनेयको करावे । तदपीछे उपनेयको वामे पासे स्थापके सर्वतीर्थोदकोंकरके अमृतामंत्रकरके कुशागोंसे सिंचन करे.। तदनंतर परमेष्ठिमंत्र पढके
“नमोऽहत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्व्वसाधुन्यः” ऐसा कहके, जिन प्रतिमाके आगे उपनेयको पूर्वाभिमुख बैठावे; तदपीछे गृह्यगुरु, चंदनमंत्रकरके अभिमंत्रण करे. ॥
चंदनमंत्रो यथा ॥ “॥ॐ नमो भगवते,चंद्रप्रभजिनेंद्राय, शशांकहारगोक्षीरधवलाय, अनंतगुणाय, निर्मलगुणाय, भव्यजनप्रबोधनाय, अष्टकर्ममूलप्रकृतिसंशोधनाय, केवलालोकावलोकितसकललोकाय, जन्मजरामरणविनाशनाय सुमंगलाय, कृतमंगलाय,प्रसीद भगवन् इह चंदनेनामृताश्रवणं कुरु स्वाहा॥" इस मंत्रकरके चंदनको मंत्रके हृदयमें जिनोपवीतरूप,कटिमें मेखलारूप और ललाटमें तिलकरूप, रेखाकरे, तदपीछे उपनेय “नमोस्तु २” ऐसें कहता हुआ, गुरुके चरणोंमें पडके खडा होके हाथ जोडके ऐसें कहै.।
“॥भगवन् वर्णरहितोऽस्मि। आचाररहितोऽस्मि । मंत्ररहितोऽस्मि । गुणरहितोऽस्मि । धर्मरहितोऽस्मि । शौचरहि: तोस्मि । ब्रह्मरहितोऽस्मि । देवर्षिपिटतिथिकर्मसु नियोजय मां ॥"
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