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________________ त्रयोदशस्तम्भः। संस्कार जगत्में प्रसिद्ध करे हैं, ऐसे जैनमतवाले मानते हैं. तथापि पूर्वोक्त आगमकी सूचनाअनुसार, और परंपरायसें चले आए जगत्व्यवहारधर्मके सोलां संस्कार श्रीवर्द्धमानसूरिजीने आचारदिनकर नामा शास्त्रमें लिखे हैं, वह अग्रिमतन स्तंभोंमें लिखेंगे. इति.॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयानन्दसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादग्रंथे _वेदभाष्यादीनामप्रमाणत्ववर्णनोनामद्वादशस्तम्भः ॥ १२ ॥ ॥अथ त्रयोदशस्तम्भारम्भः ॥ अथ त्रयोदश (१३) स्तंभमें संस्कारोंका वर्णन लिखते हैं. ॥ तत्त्वज्ञानमयो लोके य आचारं प्रणीतवान् ॥ केनापि हेतुना तस्मै नम आद्याय योगिने ॥१॥ श्रीवर्द्धमानसूरिजीने आचारदिनकर नामा ग्रंथ बनाया है, जिसके ४० उदय हैं. जिनमेंसें गर्भाधानादि षोडश (१६) उदयोंका वर्णन यहां लिखते हैं, प्रकृतोपयोगित्वात्. तत्रादौ प्रथम गर्भाधानसंस्कारका वर्णन इस त्रयोदशस्तंभमें करते हैं. और संस्कारोंका वर्णन भी उत्तरोत्तर स्तंभोंमें करेंगे. ॥ क्योंकि, समस्त परमार्थके जाणकार भगवान् अर्हन् भी गर्भसें लेकर राज्याभिषेकपर्यंत संस्कारोंको अपने देहमें धारण करते हुए, तथा देशविरतिरूप गृहस्थधर्ममें प्रतिमावहन सम्यक्त्वारोपणरूप आचार आचरण करते हुए, तथा निमेषमात्र शुक्लध्यानकरके प्राप्य केवल ज्ञानकेवास्ते दीर्घ कालतक यतिमुद्रातपः चरणादि धारण करते हुए, तथा केवलज्ञान हुए बाद परकी उपेक्षाकरके रहित चिदानंदरूप भी भगवान् समवसरणमें विराजमान हो कर धर्मदेशना, गण, गणधरस्थापना और संशयव्यवच्छेद (संशयका दूर करना) इत्यादि करते हुए, तथा तिस भगवान्के निर्वाण बाद इंद्रादि देवते प्राणरहित कर्तृकर्मकरके रहित भी तिस भगवान्के शरीरका संस्कार करते हैं, तथा स्तूपादि करते हैं. तिसवास्ते आर्हत्के मतमें लोकोत्तर पुरुषोंके आचीर्ण होनेसें आचार प्रमाणभूत है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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