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तत्त्वनिर्णयप्रासादइसीवास्ते आचारका वर्णन करते हैं. यद्यपि ॥ “ नाणं सवच्छ मूलं च साहा खंधो य दंसणं । चारित्तं च फलं तस्स रसो मुक्खो जिणोइओ॥१॥" अर्थः ॥ सर्वत्र मूलसमान ज्ञान है, और दर्शन (श्रद्धा) शाखा और खंधसमान है, तिस वृक्षका फल चारित्र है, और चारित्ररूप फलका रस जिनोदित भगवान्का कहा मोक्ष है. ॥ इसवास्ते सिद्धांतमहोदधि (समुद्र) के कल्लोलरूप चारित्रका व्याख्यान कोइ भी नहीं कर सकते हैं, तो भी, श्रुतकेवलीप्रणीतशास्त्रार्थलेशको अवलंबन करके किंचित् आचारयोग्य वचन कथन करते हैं.॥ प्रथम आचार दोप्रकरका है, यत्याचारः-यतियोंका आचार १, और गृहस्थाचार:-गृहस्थोंका आचार २. ॥ यदुक्तम् ॥
सावज्झजोगपरिवझणाओ सव्वुत्तमो जईधम्मो ॥
बीओ सावगधम्मो तईओ संविग्गपरकपहो॥१॥* जिनमें यति (साधु) धर्म तो, महावत समिति गुप्तिका धारण करना, परीषह उपसर्गोंका सहन करना, कषाय विषयोंका जीतना, श्रतज्ञानका धारण करना, वाह्य अभ्यंतर द्वादश प्रकार तपका करना, इत्यादि योगोंकरके मोक्षका देनेवाला, अर्थात् मोक्षका रस्ता है. परं है दुःप्राप्य, अर्थात् यतिधर्म प्राप्त करना मुश्किल है.।१। और गृहस्थधर्म, परिग्रह धारण करना, सुखासिका यथेष्ट विहारभोगोपभोगादिकोंकरके औदारिक सुख लेशका देनेवाला है; परं मोक्ष देने में समर्थ नहीं है. तो भी वह गृहस्थधर्म द्वादश (१२) व्रतोंका धारण करना, यतिजनोंकी उपासना सेवा करनी, अर्हन् भगवान्का अर्चन ( पूजन) करना, दान देना, शील पालना, तप करना, भावना भावनी, इत्यादिकोंकरके उपचीयमान पुष्ट हुआ थका, परंपराकरके मोक्ष देनेको समर्थ है. । यत उक्तमागमे ॥ विसमो विनिअडगमणो मग्गो मुक्खस्स इह जईधम्मो । सुगमो वि दूरगमणो गिहच्छधम्मो वि मुक्खपहो ॥१॥
* सावद्य योगों के त्यागनेसें सर्वोत्तम यतिधर्म कहाता है दूसरा श्रावकधर्म और तीसरा सविग्न पक्षीमार्ग कहाता है परमार्थमें संविग्नपक्षीमार्गका यतिश्रावकधर्ममें ही अंतर्भाव होजाता है.
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