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________________ २९० तत्त्वनिर्णयप्रासादबुद्धियोंका (पंडितोंका ) जो पूजक होवे, सो कहिये धीमह' अर्थात् विद्वजनोंका उपासक पुरुष तिस पुरुषरूप आधारविषे जो बुद्धि (ज्ञान) है, तिस बुद्धिसें जो अपृथग्भूत तिसका आमंत्रण 'हे धियो-यो' सद्गुरुकी सेवामें तत्पर जे पुरुष तिनोंकी बुद्धिके गोचर इत्यर्थः । क्योंकि जिनोंने सद्गुरुयोंकी उपासना नही करी है, ऐसे लोकायतिक (नास्तिक) आदिकोंके ज्ञानगोचर परमात्मा प्राप्त नही होता है। “यो-नः' इन दोनोंके बीचमें अकारका प्रक्षेप करनेसें 'हे अ-विष्णो' न:।यह योजन कराही है ।(प्रचोदयात् ) प्रकृष्टश्चोदः(शृंगारभावसूचन) यस्याः साप्रचोदा। प्रचोदा चासौ या च लक्ष्मीश्च प्रचोदया, तां अतति सातत्येन गच्छति प्रचोदयात्, तस्यामंत्रणं हे प्रचोदयात्!' प्रकृष्ट शृंगारभावसूचन है जिसका सो कहिये प्रचोदा;प्रचोदा सोहीं जो लक्ष्मी सो कहियेप्रचोदयातिसप्रचोदयाको (लक्ष्मीको) जो निरंतर प्राप्त होवे, सो कहिये प्रचोदयात् तिसका आमंत्रण हे प्रचोदयात् ! अथवा प्रथम 'न:' यह योजन करिये हैं। नः अस्माकं यह तो सामर्थ्यसेंही प्रतीत होनेसें। तब तो 'आनःप्रचोद' ऐसें जानना योग्य है। हे अ! हे अनःप्रचोद! अनः शकटं गाडेको प्रचोदयति प्रेरयति जो प्रेरणा करे सो ‘अनः प्रचोदः' कहिये तिसका आमंत्रण हे अन:प्रचोद' 'शैशवेहि विष्णुना चरणेन शकटं पर्यस्तमिति श्रुतेः' । बालपणेमें विष्णुने चरणकरके गाडेको प्रेरा था दूर करा था इस श्रुतिसें । ततः । समानानां तेन दीर्घः। इस सूत्रसे संधिके हुए 'आनःप्रचोद ' ऐसा सिद्ध होता है. । शंका । 'यो' इस पदसे परे 'आनःप्रचोद' पदके हुआं ‘यवानः प्रचोद' ऐसा होना चाहिये, तो यहां 'योनःप्रचोद' यह कैसे हुआ? उत्तर । जैसें तुम कहते हों, तैसें नहीं है। कातंत्रव्याकरणमें “एदोत्परः पदांते लोपमकारः" इस सूत्र में “ एदोद्भयां" इतने मात्रसे सिद्ध हुआ भी, जो परग्रहण है, सो इष्टार्थ है; तिसमें किसी स्थानपर आकारका भी लोप हो जाता है. तिसवास्ते यहां आकारलोपसे सिद्ध है. 'योन:प्रचोद' इति । ऐसें न कहना कि, इसप्रकारके प्रयोग उपलंभ नहीं होते हैं। क्योंकि, “बंधुप्रियं बंधुजनोऽऽजुहाव " इत्यादि महाकवियोंके प्रयोग देखनेसें.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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