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तत्त्वनिर्णयप्रासादपार्वतीकेसाथ इत्यर्थः । अर्वाचीन अवस्थामें पार्वतीके पीन (कठन) पयोधर (स्तन) के ऊपर प्रणयी स्नेहवान् इत्यभिप्रायः । और परमपद अवस्थाकी अपेक्षा तो 'प्रचोदया' पार्वतीके साथ 'यो' अमिश्रित ऐसें व्याख्यान करना । षडिंद्रियाणि षट् विषयाः षट् बुद्धयः सुखं दुःखं शरीरं चेत्येकविंशतिप्रभेदाभिन्नस्य दुःखस्यात्यंतोच्छेदो मोक्ष इति नैयायिकवचनप्रामाण्यात्'। इंद्रिया ६ विषय ६ बुद्धियां ६ सुख १ दुःख १ और शरीर १ये एकवीस (२१) प्रभेद भिन्न दुःखोंका जो अत्यंत उच्छेद (नाश) सो मोक्ष, ऐसे नैयायिकोंके वचनप्रमाणसें । तथा 'उदे' यह प्राचीनावस्थाका भी विशेषण जानना, और अर्थ ऐसें करना। ' उत्' यह तकारांत उपसर्ग प्राबल्य अर्थमें है, तब तो उत् प्राबल्य अतिशयकरके 'ए:' कामादिशुद्धि. करी है जिसने सो कहिए उदेः तिसका आमंत्रण हे उदे ! अर्थात् हे कामादिशुद्धिकारक !। तथा ( अत् ) यह भी विशेषण है। अत्ति-भक्षय. ति जगदिति अत् । जो जगतको भक्षण करे उसको अत् कहिए, सृष्टिका संहार करनेवाला होनेसें. यह विशेषण ईश्वरका सिद्ध है.। उक्तंच अक्षपादमते देवः सृष्टिसंहारकृच्छिवः। विभुनित्यैकसर्वज्ञो नित्यबुद्धिसमा. श्रितः ॥१॥* इतिनैयायिकाभिप्रायेण मंत्रव्याख्या॥२॥
अथ वैशेषिकके अभिप्रायकरके भी इसीतरें व्याख्या जाननी, तिनको भी शिवजीकोही देवकरके अंगीकार करनेसें. परंतु इतना विशेष है कि, वैशेषिकके मतमें परमपद अवस्थाका स्वरूप ऐसा माना है ।बुद्धि १ सुख २ दुःख ३ इच्छा ४ द्वेष ५ प्रयत्न ६ धर्म ७ अधर्म ८ और संस्काररूप ९, नव विशेष गुणोंका अत्यंत उच्छेद होना मोक्ष है.।
___ * भावार्थः-ॐ हे तीन जगत्में व्यापिन् परमेश्वर ! हे सूर्यसें भी प्रधान ! हे भर्ग ईश्वर ! हे उदेअर्वाचीनावस्थाअपेक्षासें उत्कृष्टकामिन् कामवाला! प्राचीनावस्थाअपेक्षासें है अतिशयकरके कामादिकी शुद्धि करनेवाला ! हे पार्वतीकेसाथ संबंधवाला! परम पदकी अपेक्षासे हे पार्वतीसें अमिश्रित! हे सृष्टिको भक्षण करनेवाला! पूर्वोक्त विशेषणावशिष्ट हे भर्ग ईश्वर परमेश्वर ! तूं हमारी बुद्धिकी वृद्धि कर, और अपकार करनेवाली बुद्धियोंका विनाश कर. इति ॥
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