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________________ एकादशस्तम्भः। २८५ भाषार्थः-अथ अक्षपाद जे हैं, वे अपने महेश्वरदेवको नमस्कार करते हुए प्रार्थनापूर्वक ॐभूर्भुव इत्यादि उच्चारण करते हैं । (ॐ) ऐसा सर्व विद्यायोंका आद्य बीज है, सर्व आगमोंका उपनिषद्भूत है, संपूर्ण विघ्नविघातका हननेवाला है, और संपूर्ण दृष्टादृष्ट फल संकल्पको कल्पद्रुम समान है, इसवास्ते इस प्रणिधानका आदिमें उपन्यास (स्थापन) करना परम मंगल है. नही इससे व्यतिरिक्त अन्य कोई वस्तु तत्व है. इति ॥ (भूर्भुवःस्वस्तत्) हे लोकत्रयव्यापिन् ! अक्षपादोंके मतमें शिवही सर्वगत है। तथा ( सवितुर्वरेण्यं ) हे सूर्यसें प्रधानतर ! सर्वज्ञ होनेसें 'वरेण्यं' इस स्थानपर हे वरेण्य! ऐसे जानना । अनुनासिक इतस्तु । अइउवर्णस्यांतेऽनुनासिकोनीदादेरिति' लक्षणवशात् । * इति । अव विशेष्य कहते हैं । (भर्ग) हे भर्ग ईश्वर ! ( उदे) उत्कृष्ट है 'इ' काम जिसके सो कहिए ‘उदिः' तिसका आमंत्रण हे उदे अर्थात् हे उत्कृष्टकामिन् ! अर्वाचीन अवस्थाकी अपेक्षाकरके यह विशेषण है। अब प्रार्थना कहते हैं। (अव-स्य) ये दोनों क्रियापद यथासंख्य उत्तरपद दोनोंके साथ जोडने, सोही दिखावे हैं 'अव' रक्ष-पालय-वर्द्धय । इतियावत्। पालन कर, रक्षाकर, वृद्धिकर, इत्यर्थः। किसकी। (धीम्) धी बुद्धि ज्ञान तत्त्वाधिगम (तत्त्वका जानना) ये सर्व एकार्थिक है। धियः ईःश्रीः धीः बुद्धिकी जो लक्ष्मी सो कहिए धीः तां धीम्।अर्थात् बुद्धिकी लक्ष्मीकी वृद्धि कर।ज्ञानकी प्रार्थना ईश्वरसें करनी योग्यही है। ईश्वरात् ज्ञानमन्विच्छेदिति वचनात्' तथा 'स्य' षोंच अंतकर्मणि ! इस धातुका यह रूप है नाश कर । किसका (अहिधियः) सर्पकीतरें जे बुद्धियां क्रूरतादि जे परको अपकार करनेवाली, तिनोंका नाश कर। (नो) हमारी ‘धीम्' 'अव' बुद्धिकी वृद्धि कर, और 'अहिधियः'' स्य' क्रूरतादिबुद्धियोंका विनाश कर, इत्यर्थः। फिर विशेष कहते हैं। (यो) हे यो ! मिश्रितसंबंध!। किसकेसाथ ? सो कहे हैं. (प्रचोदया) चुदण संचोदने ततश्चोदनं चोदः शृंगारभावसूचनं प्रकृष्टश्चोदो यस्याः सा प्रचोदा अर्थात् पार्वती तया सहेति वाक्यशेषः । * आचार्यश्रीहेमचंद्रानुस्मृते सिद्धहेमचंद्रनानि शब्दानुशासने प्रथमाध्याये द्वितीये पादे ॥५-२-११. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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