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________________ २७२' तत्वनिर्णयप्रासाद श्रुति ३५--इंद्र सुरा लगा हुआ सोमका अंश, कर्मोकरके शुद्ध करके पीता हुआ.-इस यज्ञमें प्रायः सुरा (मदिरा) ही की मुख्यता होती है. ३६-पिता, पितामह, प्रपितामहोंको नमस्कार, और विनती है.। पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधानमः इत्यादि ३७-पुनन्तु मा पितरः-हे पितरो! मैनुं (मुझको) शुद्ध करो. इत्यादि ३८-हे अग्ने ! तूं हमारेवास्ते ब्रीहिआदि धान्य, और दधिआदि दे, जीवनेका हेतु होनेसें; और हे अग्ने! कुत्तेसदृश दुर्जनोंका नाश कर इत्यादि ३९-हे देवानुगामीजन ! हे बुद्ध !(बुद्धि !) हे विश्व जगत् ! हे अग्ने! तुम मुझको पवित्र करो ४०-४१-अग्निकी प्रार्थना-पवित्रेण पुनीहि मा इत्यादि४२-वायुकी प्रार्थना-पवमानःसो अद्य नः इत्यादि४३-सूर्यकी प्रार्थना-उभाभ्यां देवसवितरित्यादि ४४-वैश्वदेवीकी सुराकुंभीकी उपमाद्वारा स्तुति-वैश्वदेवी पुनती इत्यादि ४५-४६-पित्रोंको और गोत्रियोंको प्रार्थना ४७-मरनेवाले प्राणियोंके दो मार्ग, मैं सुनता हुआ; एक देवताओंका मार्ग, और दूसरा पितृमार्ग (पितरोंका मार्ग).-रे स्मृतीऽअशृणवमित्यादि ४८-हविः और अग्निकी प्रार्थना-इदं हविः प्रजननं मेऽअस्तु इत्यादि ४९-५०-५१-पितरोंको प्रार्थना-इस लोकमें स्थित पितरो! तुम उर्द्धलोकमें जावो-परलोकमें स्थित पितरो तिस स्थानसें भी परले स्थानमें जावो-अंगिरसके बहुते अपत्य (संतान ) अथर्षणमुनिके संताम, भृगुके अपत्य, ये जो हमारे पितर वे हमको सुबुद्धिवाले करो-बसिष्टके अपत्य जो हमारे पूर्वपितर, जो कि देवताओंको सोम प्राप्त करते हुए उन पितरोंकेसाथ प्रीयमाण हुआ थका यम, हवियोंको भक्षण करो-उदीरतामवरे-अंगिरसो नः पितर:-ये नः पूर्वे पितरः इत्यादि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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