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दशमस्तम्भः।
૨૭૨ ५३-हे सोम! हमारे धीर पूर्वज पितरहि जिस कारणसें तेरेवास्ते यज्ञादि करते भए, इस कारणसें मैं तेरी प्रार्थना करता हूं कि, जे यज्ञके उपद्रव करनेहारे हैं, उनकों तूं दूर कर. इत्यादि
५६-मैं पितरोंको जानता हुआ.
५७-ते पितर इस यज्ञमें आओ, हमारे वचन सुनो, सुनके पुत्रोंको कहनेयोग्य जो होवे, सो कहो. तथा ते पितर, हमारी रक्षा (पालना) करो.
५८-हमारे पितर इस यज्ञमें देवयानोंकरके आओ.
५९-हे पितरः ! हम पुरुषभावकरके चलचित्तवाले होनेकरके तुम्हारा अपराध करते हैं तो भी तुम हमारी हिंसा मत करो. ____६०-हे आदित्यलोकमें रहनेवाले पितरः ! हवि देनेवाले मनुष्यकेतांइ तुम धन देवो. तथा हे पितरः ! पुत्रोंकेतांइ, यजमानोंकेतांइ, अभीष्ट धन देवो. क्योंकि, पितरोंके यजमान पुत्रही होते हैं. हे पितरः ! तुम इस हमारे यज्ञमें रस स्थापन करो.
६७-जे पितर इस लोकमें हैं, जे इस लोकमें नहीं हैं, जिन पितरोंको हम जानते हैं, और जिन पितरोंको हम नहीं जानते हैं, हे जातवेदः-अग्नि ! ते पितर जितने हैं, तिन सर्वको तूं जानता है. इत्यादि.
६८-जे पितर पूर्व स्वर्गको गए, जे पितर कृतकृत्य होकर ब्रह्मलोकको प्राप्त हुए, जे पितर आग्निमें बैठे हुए हैं, और जे पितर यजमानरूप प्रजामें बैठे हुए हैं, तिन चारों प्रकारके पितरोंकेतांइ आजदिन यह यज्ञनिमित्त अन्न होवे.
८१ से ९२ श्रुतिपर्यंत-आश्विनीकुमार, और सरस्वती इन तीनोंने जिन जिन वस्तुओंसें इंद्रका रूप बनाया तिनका वर्णन है-यथा-शष्पबिरूढव्रीहि (धान्यविशेष) करके इंद्रके रोम बनाए, विरूढयवोंकरके त्वक्-चमडी बनाई, लाजाका मांस बनाया, मासर शष्पादिचूर्ण चरुनिःनावोंकरके हाड बनाए, मदिराका लहु बनाया, इंद्रका शरीर रंगनेवास्ते; इसीवास्ते वेदोंमें इंद्रका नाम रोहित लिखा है. दूधसे इंद्रका वीर्य बनाया,
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