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________________ २६८ तत्वनिर्णयप्रासाद अपिच एक अन्य बात यह है कि, (जन्युः) यह लुप्तोपमा है जन्युरिव जैसें जननेवाला पिता प्रजापति ब्रह्मा अपनी पुत्रीका भर्ता-पति होके अपनी बेटीके शरीरको संभोग करके विषय सेवन करता भया, तैसें तूं भी (पतिः) मेरा पति होकर (तन्वं) मेरे शरीरको (आविविश्याः ) संभोग करके 'आविश' योनिमें प्रजनन प्रक्षेप, उपगृह चुंबनादि करके मुझको अच्छीतरेसें भोग इत्यर्थः॥३॥ यह सुन कर यम यमीको उत्तर देता है. न यत्पुरा चकमा कई नूनमृता वदन्तो अनृतं रपेम । गन्धर्वो अप्स्वप्या च योषा सानो नाभिःपरमं जामि तन्नौ॥४॥ अ०७। अ० ६ । व०६॥ भाषार्थः-(पुरा) पहिले प्रजापतिने (यत् ) जो अगम्य गमन करा था, अर्थात् अपनी पुत्रीसें जो संभोग करा था, सो अपरिमित प्रमाण रहित सामर्थ्यवंत होनेसे करा था, तैसें हम (न चक्रम) नही कर सक्ते हैं.। हम (ऋता) सत्य बोलते हुए (अनृतं) असत्य (कद्ध) कबी (नूनं) निश्चयकरके ( रपेम ) बोलते हैं ? कबी भी नही. अर्थात् हम कबी भी अगम्य गमन नही करेंगे. अपिच (अप्सु) अंतरिक्षमें स्थित (गन्धर्वः) किरणोंके, वा पानीके धारण करनेवाला आदित्य, और (अप्या) अंतरिक्षस्था सा प्रसिद्धा-आदित्य (सूर्य)की भार्या (स्त्री) सरण्यू, ये दोनों (नौ) अपने दोनोंके (नाभिः) उत्प, त्तिस्थान अर्थात् मातापिता है (तत्) तिस कारणसें (नो) अपने दोनोंका उत्कृष्ट (जामि) बांधवपणेका-भाइबहिनका संबंध है, तिसकारणसें पूर्वोक्त अगम्यगमनरूप अयोग्य कार्य, मैं नहीं करूंगा. इत्यभिप्रायः॥४॥ * * स्वष्टा नामक देवता, अपनी सरण्यूनामा पुत्रीको सूर्यकेतांइ देता भया, तिनोंके संबंधसे यम और यमी उत्पन्न भए; एकदा अपने सदृश स्त्रीके पास पुत्रपुत्रीको स्थापन करके सरण्यू, घोडीका का करके उत्तरकुरुको चली गई। अथ सूर्य तिस अन्यस्त्रीको सरण्यू जानके तिसकेसाथ - विषय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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