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दशमस्तम्भः ।
तथा ऋ० सं० अष्टक ७ अध्याय ६ वर्ग में यम और यमीका संवाद है. विवस्वतके पुत्रपुत्री युगल प्रसूत हुए, जब वे यौवनवंत हुए तब यमी बहिन, अपने यमनामक भाइको देखके कामातुर होके तिसकेसाथ भोग करनेकी इच्छावंत हुई; और यमको कहने लगी कि, तूं मेरेसाथ मैथुन करके मुझे तृप्त कर. तब यमने कहा कि, बहन और भाइका मैथुन (विषय) महापापका हेतु है; इसवास्ते मैं यह काम कदापि नही करूंगा. तव यमीने, यमको समझाने, और तिसकेसाथ संभोग (विषय) सेवनेकेवास्ते अनेक युक्तियां, और दृष्टांत दीए हैं. परंतु यमने तिसको उत्तर देके तिसका कहना स्वीकार नही करा. यह कथन चतुर्दश (१४) ऋचायोंमें है, और इस सूक्तके ऋषि भी यम और यमी है. यह सूक्त यमयमीऊपर संतुष्टमान होके परमेश्वरने तिनको प्रदान करा था ! अब वाचकवर्गके वाचनेवास्ते नमूनेमात्र दो ऋचायों अर्थसहित लिख दिखाते हैं.
उ॒शन्त॑ धा॒ ते अ॒मृता॑ स ए॒तदेक॑स्य चित्त्य॒जसं॒ मत्य॑स्य । नि ते॒ मनो मन॑सि धाय्यस्मे जन्युः पति॑िस्त॒न्व १मा विविश्याः ॥३॥
ऋ० अ० ७ अ० ६||
भाष्यानुसार भाषार्थः -- पुनरपि फिर यमी यमप्रतें कहती है । (घा) ऐसा निपात अपि अर्थ में है, हे यम ! (ते) प्रसिद्ध - वे - ( अमृतासः ) प्रजापति आदि देवते भी ( एतत् ) ईदृशं - शास्त्र ने जो अगम्य कही है ( त्यजसं ) त्यागीए हैं, परकेतांइ देइए हैं, ऐसी जो स्वबेटी बहिनादि स्त्रीजात तिनको ( उशन्ति ) कामयन्ते अर्थात् तिनकेसाथ पूर्वोक्त देवते भोग करनेकी इच्छा करते हैं । ( एकस्यचित् ) एकही सर्व जगत्का मुख्य प्रजापति ब्रह्मादि देवतायोंका भी अपनी बेटी भगिनी के साथ संबंध है । इसकारण (ते) तेरा ( मनः ) चित्त ( अस्मे ) मेरे ( मनसि ) चित्त ( निधायि ) स्थापन कर, अर्थात् जैसें मैं तेरेको भोगेच्छा करके वांछती हूं, तैसें तूं भी मुझको वांछ, मेरेसें भोग करनेकी इच्छा कर.
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