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________________ दशमस्तम्भः। समीक्षाः-इसमें हम यह कहना चाहते हैं कि, यमयमीने जब तपकरके यह सूक्त प्राप्त करा था, तब परमेश्वरने तुष्टमान होकर यह सूक्त दीना; और पूर्वोक्त कथन परमेश्वरने यमीके मुखसें करवाया कि, तूं अपने भाइ यमसे विषयसंभोग करनेकेवास्ते प्रार्थना कर कि, हे यम! तूं मेरेसाथ भाग कर. वाह !!! परमेश्वरकी लीला कि, जिसने भाइकेसाथ बहिनको मैथुनकी प्रार्थना करवाई! और यमसें ऋचाद्वाराही विषय सेवनकी नही करवाइ; क्या वाचकवर्गो! परमेश्वर ऐसे २ ही काम करता रहता है ? और ऐसे २ कथनोंकी उत्तमतासेंही वेद परमेश्वरके रचे माने जाते हैं? और यही वेदका अपौरुषेयत्व अनादित्व है ? जिनमें ऐसा २ कथन है. और यमने जो कहा कि, “प्रजापति ब्रह्माजी अपरिमित सामर्थ्यवाले थे, इसवास्ते उनोंने अगम्य गमन करा अर्थात् अपनी पुत्रीसें विषय सेवन करा." क्या अपरिमित सामर्थ्यवाले, ऐसे २ अनुचित काम करते हैं? जो सर्व जगत् और तत्ववेत्तायोंके निंदनीय होते हैं. जेकर प्रजापति अपरिमित सामर्थ्यवाले थे तो क्या तिनसें काम न जीता गया ? कि, जिसको यमसरीखे वा साधारण जन भी जीतते हैं, और जीत शक्ते हैं। यदि कहो कि, यह प्रजापतिकी लीला है तो, क्या पुत्रीकेसाथ विषय से. वन करना यही लीला रह गई थी ? अन्यलीला करनेका अवसर नही था? जिससें पुत्रीगमनरूप लीला कर दिखलाई ? क्या ऐसी लीला करे विना प्रजापतिका सामर्थ्य, और यश जगत्में प्रगट नहीं होता था ? जिससे ऐसी लीला करी? वाहजी वाह !!! जगत् सृजनहारे पितामहके कर्म!!! इन ब्राह्मणऋषियोंने बडे २ महात्मायोंको भी, अपने लेखसे दूषित करे हैं; इसवास्ते यह वेदोंकी रचना सर्व ब्राह्मणोंकी स्वकपोलकल्पना है. सेवन करता भया, तिससे मनुनामा राजऋषि उत्पन्न भया, । तदपीछे यह सरण्यू नही है, ऐसा जानके सूर्य घोडा बनके तिस घोडीकेसाथ जाके विषय सेवन करता भया, तिन दोनोंके क्रिडा करते हुए वीर्य एथिवीउपर पडा, तिसको गर्भकी इच्छा करके घोडीने सूंघा तिस घोडीसें दोनों अश्विनीकुमार उत्पन्न हुए। इति । ऋ० सं० अष्टक ७ । अ०६ । व० २३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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