SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 368
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशमस्तम्भः। होनेसें त्रिकालमें हैही नहीं; एकशुद्ध ब्रह्मही था. तो फिर, इंद्रको उद्देश्यके तप काहेको करती थी ? इंद्र भी तो मायाकी भ्रांतिरूपही था; जब अपालाने नदीऊपरसें सोम लेके चर्वण करा, तिसके दांतोंका शब्द सुनके इंद्रने जाना कि, पत्थरोंसें सोमके पीसनेका यह शब्द है; इंद्रको ऐसी भ्रांति हुई-क्या इंद्र महाराज स्वर्गके सुखोंको छोडके तिस जगे भटकता फिरता था ? तथा इंद्रको तो ऋग्वेदादिमें परमेश्वरकाही स्वरूप लिखा है तो, क्या ऐसे ज्ञानवान् इंद्रको अपालाके दांतोंका शब्द पत्थरोका शब्द मालुम हुआ ? इसमें सिद्ध होता है कि, तुमारा माना वेदादिकोंका वक्ता ईश्वर भी ऐसाही ज्ञानवान् होगा.-तथा पत्थरोंसें जगत्में लोक सोमरसही पीसते हैं ? अन्य नही ? जो सोमही पीसनेका शब्द है, अन्यका नही. तहां यज्ञशाला भी नही थी कि, जिससे सोम पीसनेकाही निश्चय होवे. तथा अपाला ब्राह्मणी कोइ ऊंटणी थी, वा राक्षसणी थी ? कि जिसके दांतोंका शब्द पत्थरोंके शब्दसमान इंद्रको मालुम पडा ! क्या इंद्र भिक्षाचरोंकीतरें घरघरमें सोमरस पीता फिरता था? और अपाला घडी नालायक थी ? कि जिसने अपने मुखमें चर्वण करी अपने मुखकी लाला और श्लेष्मयुक्त जुगुप्सनीय मलीन ऐंठी चगली हुई सोमकी निमंत्रणा इंद्रको करी ? इंद्र भी क्या तिसविना मरा जाता था ? जिससे पूर्वोक्त चावी हुई लाला थूकयुक्त सोमवाले अपालाके मुखको अपने मुखसें चूसके सोमका सर्व रस पी गया ! वेदांतीसाहबः-तुम नही जानते, अपालाने भक्तिसे इंद्रको सोमकी आमंत्रणा करी, और इंद्रने भक्तिवश होके चगला हुआ भी सोमरस पी लीया, इसमें क्या दोष है ? . उत्तरः---तुमारा कोइ भक्त, जो तुमको अत्यंत अच्छी लगती होवे ऐसी मिठाइ मुखमें चावके तुमको कहे कि, मेरे मुखसें मुख लगाके तुम यह मिठाइ चूसके पी लो, तो क्या तुम पी लोंगे ? नही. तो इंद्रने किसतरें चगल पी लीनी? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy