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________________ दशमस्तम्भः । ર मांगता है तो, ऋचा परमेश्वरकृत कैसें सिद्ध होवेंगी ? और ऋषि तिन ऋचायोंके कैसें सिद्ध होवेंगे ? जेकर वेद अपौरुषेय है, तब तो किसीके भी रचे सिद्ध नही होवेंगे; जेकर कहोंगे ब्रह्माजीने प्रथम वेदका उच्चार करा, इसवास्ते ब्रह्माजीके रचे वेद हैं, तब तो, यह जो कथन वेदोंमें है कि, मानसयज्ञसें ऋगादिवेद उत्पन्न भए, तथा अग्नि वायु सूर्यसें तीन वेद ब्रह्माजीने खैंचके काढे, इत्यादि मिथ्या सिद्ध होवेगा. इसवास्ते येह सर्व वेद ब्राह्मणोंकी स्वकपोलकल्पनासें रचे गए हैं, नतु ईश्वर प्रणित; परस्पर विरुद्ध, और युक्तिप्रमाणसें बाधित होनेसें. तथा ऋग्वेदसंहिताष्टक ३, अध्याय ३, वर्ग २३, में लिखा है - अतीतकालमें विश्वामित्रका शिष्य सुदा नाम राजऋषि होता भया, सो किसी कारण वसिष्ठजीका द्वेषी होता भया, तब विश्वामित्र स्वशिष्यकी रक्षावास्ते इन ऋचायोंकरके शाप देता भया. येह जो शापरूप ऋचायों है, तिनकों वसिष्ट संप्रदायी नही सुनते हैं । इतिभाष्यकारः । वे ऋचायों येह हैं.- तत्राद्या सूक्ते एकविंशी ॥ इन्द्रा॒तिभि॑र्बहुलाभि॑र्नो अद्य यांच्छ्रेष्टाभिर्मघवञ्छूर जिन्व । यो नो द्वेष्ट्यधरः सपदीष्ट यमुं द्विष्मस्तम् प्राणो जहातु ॥२१॥ ॥ अथद्वाविंशी ॥ परशुं चिहि तपति शिंबलं चिहि वृश्चति । उखा चं दिन्द्र॒ येष॑न्ती प्रय॑स्ता फेन॑म॒स्यति ॥ २२ ॥ ॥ अथत्रयोविंशी ॥ न सायकस्य चिकिते जनासो लोधं न॑यन्ति॒ पशु॒ मन्य॑मानाः । नावा॑जिन॑ वा॒जिनो॑ हासयन्ति॒ न ग॑र्द॒भं पु॒रो अश्वा॑न्नयन्ति ॥२३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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