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तत्त्वनिर्णयप्रासाद
आए मालुम होते हैं. क्योंकि, इसी पत्तन (घाट) में शतद्रू और: वियासा नदियां मिलती हैं. बहुत अगाध पाणी देखके तीन ऋचायोंसें नदीयोंकी स्तुति करी कि, मेरे उतरनेको मार्ग देओ; तब नदीयोंने कहा कि, हमको इंद्रकी आज्ञा निरंतर बहनेकी है, इसवास्ते हम चलनेसें बंध नही होवेंगी. इसतरें परस्पर नदीयोंका और विश्वामित्रका वार्तालाप हुआ, और विश्वामित्रने नदीयोंकी स्तुति करी, तब विश्वामित्रके रथकी धुरीसें भी हेठां पाणी हो गया. तब विश्वामित्र सोमवल्लीके लेनेवास्ते पार उतरके आगे गया. शतद्रू और विपाद इनका नाम मूलश्रुतिमें है. इति ॥
अब हे पाठकगणो ! तुम विचार करो कि, वेद ईश्वर वा ब्रह्मा वा परब्रह्मका रचा वा अनादि अपौरुषेय किसतरें सिद्ध हो सक्ता है ? क्योंकि सर्वसूक्तोंके न्यारे २ ऋषि है, और जिन २ ऋचायोंके जे जे ऋषि हैं, तिन २ ऋषियोंनें तप करके ऋचायें प्राप्त करी हैं; और प्रथम गायन करी हैं, तिन २ ऋचायोंके ते ते ऋषि हैं; ऐसा भाष्यमें लिखा है. और दशो मंडलोंके द्रष्टा दश ऋषियोंके नाम लिखे हैं; जितनी ऋचा जिस मंडलमें हैं तिन सर्वका स्वरूप जिसने मंडलरूपसे पहिले देखा, सो मंडलका द्रष्टा है. विश्वामित्रने, जे नदीयोंकी स्तु तिकी ऋचायों पठण करी वे ऋचायों परमेश्वरकी रची क्योंकर सिद्ध हो सक्ती हैं? ऐसेंही नदीयोंने गायन करी ऋचायों इसीतरें संपूर्ण ऋग्वेद भरा है. जेकर कहोंगे, अग्नि, सूर्य, अश्विनौ, यम, ऋभुव, उषा, वायु, वरुण, मैत्रावरुण, इंद्रादि ये सर्व ब्रह्मरूप है, इसवास्ते जो इनकी स्तुति है, सो सर्व ब्रह्मकीही स्तुति है. तब तो कुत्ते, बिल्ले, गधे, सूयर, गंदकीके कीडे, इत्यादि सर्व जंतुयोंकी स्तुति वेदमें क्यों नही करी? और जगे जगे यह लिखा है कि, हे इंद्र ! तूं हमारे शत्रुयोंका नाश कर, असुरोंका नाश कर, और हमको धन दे, गौयां दे, पुत्र दे, परिवार बे, राज्य दे, स्वर्ग दे, इत्यादि वस्तुयों कौन मांगता है ? परमेश्वर किससें मांगता है ? और कृतकृत्य परमेश्वरको पूर्वोक्त वस्तुयोंसें क्या प्रयोजन है ? वीतराग और निरुपाधि मक्तरूप होनेसें. जेकर कहोंगे, परमेश्वर नही मांगता है, किंतु यजमान
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