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________________ २५७ दशमस्तम्भः। ॥अथाष्टमी॥ एतद्वचो जरितर्मापि मृष्ठा आ यत्ते घोषानुत्तरा युगानि। उक्थेषु कारो प्रति नो जुषस्व मा नो निकः पुरुषत्रा नमस्ते॥८॥ ॥अथनवमी॥ ओ षु स्वसारः कारवेशृणोत ययौ वो दूरादनसा रथेन। नि षू नमध्वं भवता सुपारा अधोअक्षाः सिन्धवः स्रोत्याभिः॥९॥ ॥अथदशमी॥ __आ तें कारों श्रृणवामा वचासि ययार्थ दूरादनसा रथेन । नि ते नसै पीप्यानेव योषा मर्यायेव कन्याशश्वचै ते॥१०॥१३॥ ॥अथैकादशी॥ यदङ त्वा भरताः संतरेयुर्गव्यन्याम इषित इन्द्रजूतः। अर्षादह प्रसवः सर्गतक्त आ वो टणे सुमतिं यज्ञियानाम्॥११॥ ॥अथद्वादशी॥ अतारिषुर्भरता गव्यवः समभक्त विप्रः सुमतिं नदीनाम्। प्र पिन्वध्वमिषयन्तीः सुराधा आ वक्षणाः पृणध्वं यात शीभम्॥१२॥ ॥अथत्रयोदशी॥ उह ऊर्मिः शम्या हन्त्वापो योकाणि मुञ्चत । मादुष्कृतौ व्येनसान्यौ शूनमारताम् ॥ १३ ॥१४॥ २० । सं०। अ० ३ । अ० २ । व० १२ । १३ । १४ ॥ ऊपर लिखी ऋचायोंका तात्पर्य यह है कि, विश्वामित्रऋषि सोमवल्ली लेनेकेवास्ते पंजाबदेशमें आए, जहां शतद्रू और वियासा नदीयां मिलती है; अर्थात् जहां बैठके मैं यह ग्रंथ रचता हुँ, तिस जीरे गामसें तेरा (१३) मीलके फासलेपर जो हरिकापत्तन कहाता है, तिस जगे विश्वामित्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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