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________________ तत्त्वनिर्णयप्रासादकि, बृहदारण्यकके तीसरे अध्यायके चौथे ब्राह्मणमें लिखा है-आत्माही प्रथम सृष्टिके पहिले था, सो प्रजापतिरूप पुरुष हुआ, सो एकेला होनेसें डरने लगा, और अरति-दिलगिरीको प्राप्त हुआ, सो प्रजापति तिस अरतिकों दूर करनेकेवास्ते दूसरे अरति दूर करने में समर्थ स्त्रीवस्तुको इच्छता भया, अर्थात् गृद्धि करता भया; तिसको ऐसें स्त्रीविषे गृद्धि होनेसें स्त्रीके साथ मिलेहूएकीतरें प्रजापतिके आत्माका भाव होता भया, अर्थात् जैसे लोकमें स्त्री पुरुष अरति दूर करनेकेवास्ते परस्पर मिले हुए, जिस परिमाणवाले होते हैं, प्रजापति भी अपने आत्माके स्त्रीपुरुषरूप दो भाग करके तिस परिमाणवाला होता भया. जिसवास्ते अपने अर्द्ध अंग शरीरकी खी बनाई, इसीवास्ते जगत्में स्त्रीको अांगना कहते हैं. सो प्रजापति शतरूपा नामा अपनी पुत्रीको स्त्रीपणे मानी हुईको प्राप्त होता भया, अर्थात् तिससे मैथुन सेवता हुआ, तिससे मनुष्य उत्पन्न हुए.। पीछे शतरूपा पुत्री पिताके गमनसे पीडित हुई विचार करती भई, दुहित (पुत्री) का गमन करना यह अकृत्य है, और यह प्रजापति निघृण (घृणारहित) है इसवास्ते में जात्यंतर हो जाऊं; ऐसा विचार कर सो शतरूपा, गौ हो गई. तब प्रजापति ऋषभ (बैल) हुआ, उनोंके संगमसें गौयां उत्पन्न हुई. । शतरूपा वडवा (घोडी) हुई, प्रजापति घोडा हुआ; शतरूपा गर्दभी (गधी) हुई, प्रजापति गर्दभ (गधा) हुआ; उनोंके संगमसें एक खुरवाले घोडे, खचरां, और गधे, यह तीन उत्पन्न भए.। शतरूपा बकरी हुई, प्रजापति बकरा हुआ; शतरूपा अवि (भेड-घेटी) हुई, प्रजापति मेष (मींढा-घेटा, ) हुआ; उनोंके संगमसें अजा, अवि उत्पन्न भए.। ऐसें पिपीलिका (कीडी) पर्यंत जो जो स्त्री पुरुषरूप जोडा है, सो सर्व इसी न्यायकरके जाननाइत्यादि ॥ यह हमने किंचिन्मात्र लिख दिखाया है, यदि यह पूर्वोक्त कृत्योंका कर्ता ईश्वर सिद्ध होवे तो, वेदादिकोंका वक्ता भी ईश्वर सिद्ध होते. परंतु पूर्वोक्त कृत्य ईश्वर परमात्मामें कबी भी सिद्ध नहीं हो सक्ते हैं. यदि पूर्वोक्त कृत्योंके करनेवालेको तुम ईश्वर, परमात्मा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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