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________________ नवमस्तम्भः २५३ तिस पृथिवीमें कंकरी मिलाके प्रजापतिने पृथिवीको दृढ करी, इत्यादिअब विचारना चाहिये कि, जिसने संकल्पमात्रसेंही वायु दिशादि प्रकट करे, वो क्या पृथिवीको स्वतोही नहीं बना सक्ता था ? जिसवास्ते इतना टंटा अपने गलेमें डाल लिया. तथा यह कथन ऋग्वेदयजुर्वेदसें विरुद्ध है. क्योंकि, उनमें लिखा है कि, भूमि प्रजापतिके पगोंसें उत्पन्न भई, दिशा प्रजापतिके कानोंसें, और वायु ऋग्वेदमें प्रजापतिके प्राणोंसें, और यजुर्वेदमें प्रजापतिके कानोंसें उत्पन्न भया. इति-और यहां प्रजापति मृत्तिका ले आया, उससे पृथिवी उत्पन्न भई, और प्रजापतिके संकल्पमात्रसें वायुदिशादि उत्पन्न भए, यह परस्पर विरुद्ध. ॥ और तैत्तिरीयसंहिता कां०७। प्र० १ । अनु० ५। में लिखा. है ॥ आपो वा इदमग्रे सलिलम् आसीत्। तस्मिन् प्रजापतिवायुभूत्वाऽचरत्। स इमामपश्यत् तां वराहो भूत्वाऽऽहरत्। इति॥ भावार्थ:-(अग्रे) अर्थात् सृष्टिकी उत्पत्तिसे पहिले जलही जल था, तिस जलमें प्रजापति वायुरूप हो कर, फिरता हुआ, पर्यटन अर्थात् चारोंऔर घूम कर सो प्रजापति, ( इमां) इस पृथिवीको देखता भया, तब (तां) तिस पृथिवीको वराहरूप हो कर प्रजापति जलके ऊपर ले आता भया-इति ॥ देखिये इसमें पर्यालोचनरूप तपका कथन नहीं है, प्रजापतिने वायुरूप हो कर और घूम कर जलमें पृथिवीको देखा, सो भी इसही पृथिवीको देखा, नतु अन्यको, तथा पुष्करपर्ण (कमलपत्र) आदिका वर्णन भी इस मूल श्रुतिमें नहीं है; यह परस्पर विरुद्ध. ॥ - __ अब वाचकवर्गको विचारना चाहिये कि, जिन पुस्तकोंमें अपने जगत् कर्ता ईश्वररूप इष्टतत्त्वमेंही पूर्वोक्त विरोधसमूह होवे, वे पुस्तक सर्वज्ञ वीतराग अष्टादशदूषणरहित परमात्माके कथन करे सिद्ध हो सक्ते हैं ? कबी भी नही. क्योंकि, जैसा परमेश्वर और परमेश्वरके कृत्योंका खरूप वेदादि पुस्तकोंमें कथन करा है, वो कथन सर्वज्ञ परमात्माका है, वा यह कृत्य परमेश्वरके हैं, ऐसा थोडी बुद्धिवाला पुरष भी नहीं कह सक्ता है. जैसें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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