________________
२४४
तत्त्वनिर्णयप्रासादल्लीके नशेमें वा वाजपेय सौत्रामण्यादियज्ञोंमें ऋषियोंने मदिरापान करा तिसके नशेमें आ कर जो मनमें आया सो विनाविचारे उच्चारण कर दिया; यह कारण तो हो सकता है, अन्य नहीं. होवे तो, बतला देना चाहिए. तथा ऋग्वेदयजुर्वेदमें, मानस यज्ञ देवताओंने करा, तिस यज्ञसें वेदोंकी उत्पत्ति हुई लिखा है, यह परस्पर विरुद्ध है..
एवं वा अरेऽस्य महतो भूतस्य निःश्वसितमेतद्यदृग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्वाङ्गिरस इत्यादि ।
श०कां०१४ । अ । ब्रा ४ । क १० ।। इसश्रुतिका भावार्थ यह है कि, ऋगादिचारोंवेद परमात्माके उत्स्वासरूप है । अब देखीए ! ! ऋग्वेदयजुर्वेदमें तो लिखा है, चारों वेद मानस यज्ञसे उत्पन्न हुए; अथर्ववेदमें लिखा है, सामवेद परमात्माके रोम हैं, और अथर्ववेद परमात्माका मुख है; तथा इसश्रुतिमें चारोंकोही परमात्माके उत्खास कहे. यह परस्पर विरुद्ध नही तो, क्या है ? तथा अन्यजगें लिखा है, अग्निसें ऋग्वेद, वायुसे यजुर्वेद, और सूर्यसे सामवेद, आकर्षण करे-खेंचके निकाले. इत्यादि वेदोंमें जो कथन हैं, सो प्रमाण बाधित है. इसवास्तेही प्रेक्षावानोंको अंगीकार करने योग्य नहीं है. , प्रजापतिरकामयत प्रजायेयभूयान्त्स्यामिती । स तपोऽतप्यत स तपस्तत्वेमांल्लोकानसृजत । पृथिवीमन्तरिक्षं दिवं । सतांल्लोकानभ्यतपत्तेभ्योऽभितप्तेभ्यस्त्रीणि ज्योतीष्यजायन्त । अग्निरेव पृथिव्या अजायत । वायुरन्तरिक्षात् । आदित्योदिवस्तानि ज्योतीष्यभ्यतपत् तेभ्योऽभितप्तेभ्यस्त्रयो वेदा अजायन्त । ऋग्वेद एवाग्नेरजायत । यजुर्वेदो वायोः । सामवेद आदित्यादित्यादि ॥ ऐ० ब्रा० पं० ५। कं० ३२॥ .
भाषार्थः--(प्रजापतिः) प्रजापति जो ब्रह्मा सो ( अकामयत) इच्छा करता हुआ कि (प्रजायेय ) में उत्पन्न हो कर (भूयान्त्स्यामिति) बहुत प्रकारका होऊं ऐसे विचार कर (स तपोऽतप्यत् ) सो तप करती हुआ (स तपस्तत्वा) सो तप करके (इमान् लोकान् असृजत) इन तीन लोकोंको उत्पन्न करता हुआ. सोही दिखावे हैं. (पृथिवीं) एक, ए.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org