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________________ नवमस्तम्भः । २४३ धारण नही कर सक्ती है. और अदितिनें तो अन्नमात्रके भक्षण करनेसें गर्भ धारण करा, यह प्रमाणविरुद्ध नही तो, क्या है ? तिस अदितिके गर्भसें बारां आदित्य अर्थात् सूर्य उत्पन्न भए ऋग्वेदयजुर्वेदमें लिखा है, प्रजापतिके नेत्रोंसें सूर्य उत्पन्न भया; यह परस्पर विरुद्ध है. ॥ यस्मादृचोअपातंक्षन्यजुर्यस्माद्पाकंषन् । सामानि यस्य लोमानि॒ अथर्वाङ्गिरसो मुखम् । स्कम्मन्तम् ब्रूहि कतमः स्विदेव सः॥ अथर्वसं० ० । कां० १० । प्र० २३ । अ० ४ । मं० २० ॥ भाषार्थः -- ( यस्मादृचो ० ) जिस परमात्मासें ऋग्वेद उत्पन्न हुए हैं, और (यजुर्यस्मादपाकपन् ) जिस परमात्मासें यजुर्वेद उत्पन्न हुआ है, और ( सामानि यस्य लोमानि ) सामवेद जिस परमात्मा के रोम हैं, तथा (अथर्वाङ्गिरसो मुखम् ) आंगिरस जो है अथर्ववेद सो जिसका मुख है. (स्कंभंतं ब्रूहि कतमः स्विदेव सः ) ऐसा जो है स्कंभ अर्थात् सबका आश्रय भूत सो ( कतमः ) कौन है ? ( ब्रूहि ) कह - कथन कर (स्वित् एव सः) वही केवल एक परब्रह्म परमात्माही है, और कोइ नही. ॥ [समीक्षा] परमात्मासें ऋग्वेद उत्पन्न हुआ, और परमात्मासेंही यजुर्वेद उत्पन्न हुआ, सामवेद परमात्माके रोम है, और अथर्ववेद परमात्माका मुख है । यदि ऋग्वेद यजुर्वेद परमात्मासें उत्पन्न हुए हैं, तो क्या सामवेद और अथर्ववेद परमात्मासें नही उत्पन्न हुए हैं ? जो उनको रोम, और मुख कहा ! यदि सामवेद परमात्माके रोम, और अथर्ववेद परमात्माका मुख ऐसेंही कथन करना था तो ऋग्वेद शिर, और यजुर्वेद बाहु, यह भी कह देना था वा अन्य कोई अंग कहने थे. क्योंकि, यह दोनो वेद भी तो, परमात्माके अंग होने चाहिए; सामअथर्ववेदवत्. नही तो, उन दोनोंको भी रोम मुख न कहना चाहिए; इन चारोंमें क्या विशेष है ? जो दो वेदोंको परमात्मासें उत्पन्न हुए कहे; तीसरेको रोम और चौथेको मुख कह दिया. अन्य तो किंचित् भी विशेष नही, परंतु सोमव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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