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________________ ११ नवमस्तम्भः। भावार्थः--यदि जो मनुष्यलोग सूर्यादिलोकोंके उत्तमकारण प्रकृतिको और उस प्रकृतिमें उत्पत्तिकी शक्तिको धारण करनेहारे परमात्माको जानें तो वे जन इसजगत्में विस्तृत सुखवाले होवें ॥६३॥ इसकी समीक्षा करनेकी हमको कुछ आवश्यकता नहीं है. क्योंकि, दयानंदजीके अर्थही परस्पर समीक्षा कर रहे हैं. यदि कोइ जिज्ञासु जन अंतर्दृष्टि लगाके विचार करे तो, उसको खतोही मालुम हो जावे कि, दयानंदस्वामीका अर्थ निःकेवल मनःकल्पित है. और केवल वेदोंका बिहुदापणा छीपानेका प्रयोजन है. अष्टौ पुत्रासो अदितेः।ये जातास्तन्वः परिदेवां३उपप्रैत् सप्तभिः।२। परी मार्ताण्डमास्यत् ॥७॥ तैत्तिरीयेआरण्यके १ प्रपाठके १३ अनुवाके ७ मंत्रः॥ मित्रश्च वरुणश्च । धाता चार्यमा च।अाश्च भगश्च । इन्द्रश्च विवस्वाश्येत्येते॥१०॥० आ० १ प्र० १३ अ० १० मंत्रः॥ भाषार्थः-(अदितेः) अदितिदेवताके (अष्टौ पुत्रासः) अष्टसंख्याकाः पुत्रा विद्यते-आठ पुत्र हैं (ये) पुत्राःजे पुत्र (तन्वः परि) शरीरस्योपरि-शरीरके उपर (जाताः) उत्पन्न हुए हैं और सा इत्यर्थः। तिनमेसें (सप्तभिः) सात पुत्रोंकेसाथ (देवान् ) देवताओंके (उपप्रेत् ) समीप प्राप्त होती भई (मार्ता ण्डं ) माताड अर्थात् सूर्यनामा आठमे पुत्रको ( परास्यत् ) पराकृतवतीत्यागती भई, अर्थात् तिस एक आठमे पुत्रको त्यागके अन्य सात पुत्रोंके साथ अदिति देवलोकमें देवताओंके समीप गई. ॥७॥ __ अब तिन आठे पुत्रोंके नाम अनुक्रमकरके कहते हैं. मित्र १, वरुण २, धाता ३, अर्यमा ४, अंशप, भग ६, इंद्र ७, और विवस्वान ८, (इत्येते) मित्रवरुणादि ये आठ पुत्र कहें. ॥१०॥ [समीक्षा] इसमें अदितिके आठ पुत्र लिखे हैं, जिनमें सातमा पुत्र इंद्र, और आठमा पुत्र सूर्य, लिखा है.। ऋग्वेदमें लिखा है कि, इंद्र प्रजापतिके मुखसे उत्पन्न हुआ है,। और ऋग्वेद यजुर्वेद दोनोंहीमें लिखा है कि, सूर्य प्रजापतिके नेत्रोंसे उत्पन्न हुआ है.। यह परस्पर विरुद्ध है.॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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