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________________ नवमस्तम्भः। २३३ जिसको प्रजापति कहते हैं, सो (अग्रे) जगदुत्पत्तिसे पहिले (समवर्तत) भलीप्रकारें वर्तमान था ? नही था; जगदभावे पाणीअंडादिकोंका भी अभाव होनेसें. तथा सो प्रजापति (जातः) उत्पन्न हो कर (भूतस्य) संपूर्ण भूतप्राणियोंका (एकः) एक आपही (पतिः) पालक (आसीत्) होता भया ? नही. जगत्के अभावसे पाणीअंडादिकोंका अभाव सिद्ध होता है, अंडेके अभावसे प्रजापतिका अंडेसे उत्पन्न होना असिद्ध है, 'मूलं नास्ति कुतः शाखेतिवचनात्.' यदि प्रजापतिका उत्पन्न होनाही संभव नही होता है तो, जगत्का पालनपणा कहांसें होवे ? असत्रूप होनेसें; शशशृंगवत्. तथा अंडजमे जगत पालनेकी शक्ति भी नही सिद्ध होती है, चटकवत्. ऐसेंही उत्तरोत्तर वितर्क जान लेने । तथा (सः) पूर्वोक्त प्रजापति ( पृथिवीं) आकाशको (यां) स्वर्गलोकको और (इमां ) इस भूमिलोकको (दाधार) धारण करता भया? नही. पालनादिके असिद्ध होनेसें (कस्मै देवाय हविषा विधेम) ऐसे पूर्वोक्त प्रजापतिदेवकेलिये हम हविःप्रदान करीए? नही. यथार्थ देवपणा सिद्ध न होनेसें. इत्यादि अनेक कल्पना पूर्वोक्त श्रुतियोंमें हो सक्ती है, और इसीवास्ते वेदके सत्यार्थका निश्चय नही हो सकता है. स्वामी दयानंदसरस्वतीने तो कल्पना करनेमें कसर नही रखी है, परंतु सांप्रतकालमें कइ सनातनधर्मी भी मनमाने उलट पालट अर्थ करके छपवा रहे हैं. इससे सिद्ध होता है कि, वेदका सत्यार्थ कोई नही जानता है. और अर्थोंके निश्चयविना वेद ईश्वरोक्त सत्योपदेशक पुस्तक है, यह भी निश्चय नही हो सकता है. ___ अब पूर्वोक्त हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे इसश्रुतिका जो अर्थ स्वामीदयानंदजीने कल्पन करा है, सो लिख दिखाते हैं. (ब) हे मनुष्यो ! जैसे हमलोग जो इस (भूतस्य) उत्पन्न हुए संसारका (जातः) रचने और (पतिः) पालन करनेहारा ( एकः) सहायकी अपेक्षासे रहित (हिरण्यगर्भः) सूर्यादि तेजोमय पदार्थों का आधार (अग्रे) जगत् रचनेके पहिले (समवर्तत) वर्तमान (आसीत् ) था (सः) वह (इमां) इस संसारको रचके (उत) और (पृथिवीं) प्रकाशरहित 5 . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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