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________________ नवमस्तम्भः । २२९ (क) (आपः) पाणी-जल (प्रथमं ) पहिले (तमित् ) तमेव-तिसही (गर्भ) गर्भकों (दभ्रे) दधिरे-धारण करते भए (यत्र) जिस कारणभृत गर्भमें (विश्वे) सर्वे ( देवाः) देवते ( समगछन्त) संगताः संभूय वर्तते- एकत्र हो कर वर्तते हैं. अब तिस गर्भका अधार कहते हैं. (अजस्य ) जन्मरहित परमेश्वरके (नाभावधि) नाभिस्थानीय स्वरूपमध्ये (एक) विभागरहित अनन्यसदृश कुछक बीज गर्भरूपको (अर्पितं) स्थापित किया (यस्मिन्) जिस बीजमें (विश्वानि) सर्व (भुवनानि) भृतजात (तस्थु) स्थित हुए. बीज स्थापित करने में स्मृतिका भी प्रमाण है -“ अपएव ससर्जादौ तासु बीजमथाक्षिपत् तदएडमभवढेमं सूर्यकोटिसमप्रभमिति "॥ सोही सर्वका आश्रय है, परंतु तिसका अन्य कोइ आश्रय नहीं है. ॥ ३०॥ [समीक्षा ] यह भाष्यकारका कथन भी प्रमाणबाधित, और ऋग्वेद अष्टक ८ के, तथा यजुर्वेद अध्याय ३१ के कथनसें विरुद्ध है. क्योंकि, वहां परमेश्वरकी नाभिमें पाणीने बीजरूप गर्भ स्थापित किया, इत्यादि वर्णन नही है. बाकी समीक्षाप्रायः (अ) समीक्षावत् जाननी. यहां यह भी कहना योग्य है कि, वेदोंके अर्थ सर्वज्ञ कथित नही है; जिसको जैसें रुचे है, वैसेही अर्थ वह लिख देता है. माधव, महीधर, ब्रह्मकुशलोदासी, दयानंदसरस्वतीवत् । यदि वेदोंके ऊपर सर्वज्ञकथित प्राचीन अर्थ नियमानुसार होते तो, ऐसें कभी न होता. परंतु प्रथम वेदही सर्वज्ञके कथमकरे सिद्ध नहीं होते हैं तो, अर्थोंका तो क्याही कहना है ? परस्पर विरुद्ध होनेसें. और यही असर्वज्ञकथित वेद होने में बड़ा भारी दृढ प्रमाण है. इसवास्ते सज्जन पुरुषोंको तटस्थ होकर सत्यासत्यका निर्णय करना चाहिये. ब्रह्म ह ब्राह्मणं पुष्करे ससृजे, स खलु ब्रह्मा सृष्टश्चिंतामापेदे, केनाहमेकाक्षरेण सर्वांश्च कामान्, सर्वांश्च लोकान्, सर्वांश्च देवान्, सर्वांश्च वेदान्, सर्वांश्च यज्ञान् , सर्वांश्च शब्दान्, सर्वांश्च व्युष्ठीः, सर्वाणि च (क)जहां ऐसा संकेत होवे वहां भाष्यकारका अर्थ जाणना. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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