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________________ 110 २३० तत्त्वनिर्णयप्रासादभूतानि, स्थावरजंगमान्यनुभवेयमिति, सब्रह्मचर्यमचरत्, समित्येतदक्षरमपश्यत्, द्विवर्ण, चतुर्मात्रं, सर्वव्यापी, सर्वविभ्वयातयाम, ब्रह्म व्याहृति, ब्रह्मदैवतं, तया सर्वांश्च कामान्, सर्वांश्च लोकान्, सर्वांश्च देवान्, सर्वांश्च वेदान्, सर्वांश्च यज्ञान, सर्वांश्च शब्दान्, सर्वांश्च व्युष्टीः, सर्वाणि च भूतानि, स्थावरजंगमान्यन्वभवत् इति ॥ गोपथ० पू० भा० प्रपा० १ बा० १६ ॥ भाषार्थः-(ब्रह्म ह ब्रह्माणं पुष्करे ससृजे) ह प्रसिद्धार्थमें अव्यय है। ब्रह्म जो है सच्चिदानंद परमात्मा उसने ब्रह्माको (पुष्करे ) अर्थात् नाभिकमलमें उत्पन्न किया (स खलु ब्रह्मा सृष्टश्चिन्तामापेदे ) सो वह ब्रह्माजी उत्पन्न हो कर यह शोचने लगेकि (केनाहमेकाक्षरेण ) में किस एक अक्षरकरके ( सर्वांश्च कामान् ) संपूर्णकामनाओंको ( सर्वांश्च लोकान् ) संपूर्णपृथिवीआदि लोकोंको और (सर्वांश्च देवान् ) संपूर्ण अग्निआदि देवताओंको तथा ( सर्वांश्च वेदान् ) संपूर्ण ऋगादिवेदोंको और ( सर्वांश्च यज्ञान् ) संपूर्ण अग्निष्टोमादि यज्ञोंको तथा ( सर्वांश्च शब्दान् ) संपूर्ण वैदिक और लौकिकादि शब्दोंको और ( सर्वांश्च व्युष्ठी:) संपूर्ण समृद्वियोंको तथो ( सर्वाणि च भूतानि ) संपूर्ण जो भूत हैं स्थावरजंगमादि तिनको कैसें ( अनुभवेयम् ) अनुभव अर्थात् उत्पन्न करूं ? ऐसे विचार कर (सब्रह्मचर्यमचरत्) सो ब्रह्मा ब्रह्मचर्यकों धारण करता भया अर्थात ब्रह्माजीने ब्रह्मचर्य धारण किया तिस ब्रह्मचर्यके प्रभावसे ( स ॐमित्येतदक्षरमपश्यत् ) ब्रह्माजीने म् इस अक्षरका अवलोकन किया कैसा है यह उम्कार कि (द्विवर्णं चतुर्मात्रं ) स्वर और व्यंजन ये दो प्रकारके अक्षर है जिसमें और अकार उकार मकार तथा अर्द्धबिंदु यह चार मात्रा है जिसमें फिर कैसा है कि सर्वव्यापी और सर्वविभु तथा (अयातयाम) अर्थात् विकाररहित ऐसा ब्रह्मस्वरूप और (ब्रह्मव्याहृति) अर्थात् ब्रह्मका नामरूप और (ब्रह्मदैवतं ) ब्रह्माही है देवता जिसका ऐसे ॐकारके अवलोकनमात्रसे ( सर्वांश्च कामान् ) संपूर्ण कामना और संपूर्णलोक तथा संपूर्ण देवता और संपूर्ण वेद तथा संपूर्ण यज्ञ और संपूर्ण शब्द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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