________________
२२८
तत्त्वनिर्णयप्रासादबीजरूप जो ब्रह्मा सो कैसे हैं कि (यस्मिन् विश्वानि भूवनानि तस्थुः ) जिसमें (विश्व ) अर्थात् संपूर्ण चतुर्दश संख्याक भुवन स्थित हो रहे हैं.
[समीक्षा] यह श्रुति ऋग्वेदसें विरुद्ध है. क्योंकि, ब्रह्माजीकी उत्पत्तिवास्ते ऋग्वेदमें कमल नहीं कहा है.।१। ब्रह्माजीसे पहिले परमात्माका शरीर सिद्ध होता है, विनाशरीरके नाभिमें कमलोत्पत्तिके सिद्ध न होनेसें.
और परमाणुयोंके विना शरीर नाभिकमल नहीं हो सक्ते हैं; इत्यद्वैतहानि. ।२। आकाशविना पाणीरूप गर्भ किस जगे धारण करा? और ब्रह्माजी, और कमल ये दोनों किस स्थानमें थे ? । ३ । इत्यादि अनेक दूषण इस श्रुतिमें हैं. ॥१॥
(ब) हे मनुष्यो (यत्र) जिस ब्रह्ममें (आपः) कारणमात्र प्राण वा जीव (प्रथमम् ) विस्तारयुक्त अनादि (गर्भम्) सब लोकोंकी उत्पत्तिका स्थान प्रकृतिको (दधे) धारण करते हुए वा जिसमें (विश्वे) सब (देवाः) दिव्य आत्मा और अंतःकरणयुक्त योगीजन (समगछन्त) प्राप्त होते हैं वा जो (अजस्य) अनुत्पन्न अनादि जीव वा अव्यक्त कारणसमूहके (नाभौ) मध्यमें (अधि) अधिष्ठातृपनसें सबकेउपर विराजमान (एकम् ) आपही सिद्ध (अर्पितम्) स्थित (यस्मिन् ) जिसमें (विश्वानि) समस्त (भूवनानि) लोकोत्पन्न द्रव्य (तस्थुः) स्थिर होते हैं, तुमलोग (तमित्) उसीकों परमात्मा जानो ॥३०॥
भावार्थ:-मनुष्योंको चाहिये कि जो जगत्का आधार योगियोंको प्राप्त होनेयोग्य अंतर्यामी आप अपना आधार सबमें व्याप्त है उसीका सेवन सब लोग करें ॥३०॥
[समीक्षा ] वाचकवर्गको मालुम होवे कि, स्वामी दयानंदजीका जो लेख है, सो तो स्वतोहि खंडनरूप है. क्योंकि, पदार्थमें कुछ और लिखा है, और भावार्थमें औरही लिखा है तथा संस्कृतपदार्थमें और, अन्वयमें और, और भावार्थमें औरही लिखा है, तथा संस्कृत प्राकृत दोनोंमें अन्यअन्यही लिखा है, इसवास्ते स्वामीजीका लेख परस्पर विरुद्ध है; अतएव असमीचीन है.
जहां (ब) ऐसा संकेत होवे वहां स्वामी दयानदसरस्वतीकत भाषार्थ जानना ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org