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अर्थ:- भवानीके नाम से वर्णन किये हैं ॥ कुंडासना, जगतकी माता, बुद्ध देवकी माता, जिनेश्वरी, जिनदेवकी माता, जिनेंद्रा, सरस्वती हंस, जिसकी सवारी है ॥
॥ नगरपुराण भवावतार रहस्यमें ॥ अकारादि हकारान्तं मूर्वाधोरेफसंयुतं । नादबिंदुकलाकान्तं चन्द्रमडलसन्निभं॥ एतद्देवि परंतत्वंयोविजानातितन्तः । संसारबन्धनं छिया सगच्छेत्परमां गतिम् ___ अर्थ:---आदिमें अकार और अंतमें हकार और ऊपर और नीचे रकारसे युक्त नाद और बिन्दु सहित चन्द्रमाके मंडल के तुल्य ऐसा अर्हन् (जिनदेव ) जो शब्द है यह परम तत्व है, इस्को जो कोई यथार्थ रूपसे जानता है वह संसारके बंधनसे मुक्त होकर परम गतिको पाता है.
॥ नगरपुराण ॥ दशभिर्भोजितैविप्रैः यत्फलं जायते कृते।
मुनिमहन्तभक्तस्य तत्फलं जायते कलौ ॥ अर्थ:--सत्ययुगमें दश ब्रामाणों को भोजन देनेसे जो फल होता है वहही फल कलियुगमें अर्हतभक्त मुनिको भोजन देनेसे होता है.
॥ मनुस्मृतिग्रंथ ॥ कुलादिबीजं सर्वेषां प्रथमो विमलवाहनः । चक्षुष्मांश्च यशस्वी वाभिचन्द्रोथ प्रसेनजित् ॥ मरूदेवी च नाभिश्च भरतेः कुलसत्तमः । अष्टमो मरूदेव्यां तु नाभेर्जात उरुक्रमः॥ दर्शयन् वर्मवीराणां सुरासुरनमस्कृतः।
नीतित्रितयकती यो युगादौ प्रथमो जिनः॥ अर्थ:-सर्व कुलोका आदि कारण पहिला विमलवाहन नामा और चक्षुष्मान ऐसे नामवाला यशस्वी अभिचन्द्र और प्रसेनजित् मरुदेवी और नाभि नामवाला और कुलमें श्रेष्ठ भरत और आठवां नाभिका मरुदेवीसें उरुक्रम नामवाला पुत्र उत्पन्न हुआ ॥ यह उरुक्रम वीरोंके मार्गको दिखलाता हुवा देवता और दैत्योंसे नमस्कारको पानेवाला और युगके आदि में तीन प्रकारकी नीतिको रचनेवाला पहिला जिन भगवान हुवा ॥
भावार्थ:-यहां विमलयादि मनु कहे हैं, जैनमतमें इनको कुलकर कहा है और यहां युगके आदिखें जो अबतार हुआ है उस्को जिन अर्थात् जैन देवता लिखाहै इससे विदित है कि जैनधर्म युगकी आदि विषे विद्यमान होनेसे सबसे पहिलेका है.
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