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________________ ( १५ ) ॥ दक्षिणामूर्त्ति सहस्रनाम ग्रन्थ ॥ शिवउवाच । जैनमार्गरतो जैनो जितक्रोधो जितामयः ॥ अर्थ:-- शिवजी बोले, जैनमार्ग में रति करनेवाला जेनी, क्रोधके जीतनेवाला, और रोगोंके जीतनेवाला. भावार्थ:- शिव अपने हजार नामोंमें एक नाम जैनी बताकर क्रोधको जितनेवाले कहते हैं. ॥ वैशंपायनसहस्रनाम ग्रन्थ ॥ कालनेमिनिहा वीरः शूरः शौरिर्जिनेश्वरः । अर्थः-- भगवानके नाम इस प्रकार वर्णन किये हैं ।। कालनेमिके मारनेवाला, वीर, बलवान्, कृष्ण और जिनेश्वर । ॥ दुर्वासा ऋषिकृत महिम्नस्तोत्र ॥ तत्र दर्शने मुख्यशक्तिरितिं च त्वं ब्रह्म कर्मेश्वरी । कर्त्ताऽर्हन्पुरुषोहरिश्च सविता बुद्ध: शिवस्त्वं गुरुः ॥ अर्थः-- वहां दर्शन में मुख्य शक्ति आदि कारण तू है, और ब्रह्म भी तू है. माया भी तू है, कर्त्ता भी तू है और अर्हन भी तू है, और पुरुष (जीव ), हरि सूर्य, बुद्ध और महादेव गुरु वेस भी तूही है, ॥ भावार्थ:-- यहां अर्हन् तू है ऐसा कहकर भगवानकी स्तुति करी. ॥ हनुमन्नाटक | यं शैवाः समुपासते शिव इति ब्रह्मेति वेदान्तिनो । बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणपटवः कर्त्तेति नैयायिकाः ॥ अर्हन्नित्यथ जैनशासनरताः कर्मेति मीमांसकाः । सोयं वो विदधातु वांच्छितफलं त्रैलोक्यनाथः प्रभुः ॥ अर्थ :-- जिसको शैवलोग महादेव कहकर उपासना करते हैं, और जिसको वेदान्ति लोग ब्रह्म कहकर और बौद्ध लोग बुद्धदेव कहकर और युक्ति शास्त्रमें चतुर नैयायिक लोग जिसको कर्त्ता कहकर और जैनमतवाले जिसको अर्हन् कहकर मानते हैं और मीमांसक जिसको कर्मरूप वर्णन करते हैं वह तीन लोकका स्वामी तुम्हारे वांच्छित फलको देवै ॥ भावार्थ:- हनुमानने समुद्र सेतू बांधते वखत छ मतोंमें जिन देवकी भी स्तुति करी है. अर्थात् रामचंद्रजी के समय में जैनमत विद्यमान था. ॥ भवानीसहस्रनाम ग्रंथ ॥ कुण्डसना जगद्धात्री बुद्धमाता जिनेश्वरी । जिनमाता जिनेद्रा च शारदा हंसवाहिनी || For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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