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( १७ )
मनुजीको होनेको अन्यमतवाले लाखों वर्ष ( सत्ययुग में ) मानते हैं. तो मनुजी पहिले जैनधर्म विद्यमान था.
|| प्रभासपुराण ||
भवस्य पश्चिमे भागे वामनेन तपः कृतम् । तेनैव तपसाकृष्टः शिवः प्रत्यक्षतां गतः ॥ पद्मासनसमासीनः श्याममूर्तिर्दिगम्बरः । नेमिनाथः शिवोथैवं नाम चक्रेऽस्य वामनः ॥ कलिकाले महाघोरे सर्वपापप्रणाशनम् । दर्शनात् स्पर्शनादेव कोटियज्ञफलप्रदम् ॥
अर्थ - शिवजीके पश्चिमभागमें वामनने तप किया था उस तपके कारण शिवजी वामनको प्रत्यक्ष हुए. किस रूपमें प्रत्यक्ष हुवे ? पद्मासन लगाये हुके, श्यामवरण और नम तब वामनने इनका नाम नेमिनाथ रक्खा । यह नाम इस भयंकर कलियुग में सर्व पापों को नाश करनेवाला है और इनके दर्शन वा स्पर्शनसें करोड यज्ञका फल होता है.
भावार्थ:-श्री नेमिनाथ भगवान् जैनियोंके २३ मे तीर्थंकर हैं, और जैनधर्मके ग्रंथोंमें भी उनका वर्ण श्याम लिखा हैं । इसप्रभास पुराणमें उनको शिवजीका अवतार वर्णन करके प्रशंसा की है.
॥ ऋग्वेद ॥
ॐ पवित्रनग्नमुपवि (ई) प्रसामहे येषां नग्ना (नग्नये) जातिर्येषां वीरा ॥ अर्थ :-- हमलोग पवित्र पापसें बचानेवाले नम देवताओंको प्रसन्न करते हैं जो नम्र रहते हैं और बलवान् हैं ।
ॐनग्नं सुधीरं दिग्वाससं ब्रह्मगर्भ सनातनं उपैमि वीरं पुरुषमर्हतमादित्यवर्णं तमसः पुरस्तात्स्वाहा ॥
अर्थः- :--नम धीर बीर दिगम्बर ब्रह्मरूप सनातन अर्हत आदित्यवर्ण पुरुषकी सरण प्राप्त होता हूं ॥
|| महाभारत ग्रन्थ ॥
आरोहस्व रथं पार्थ गांडीवंच करे कुरु ।
निर्जिता मेदिनी मन्ये निर्बंथा यदि सन्मुखे ॥
अर्थ:-- हे युधिष्ठिर ! रथमें सवार हो और गांडीव धनुष हाथमें ले। मैं मानता हूं कि जिसके सन्मुख जैन मुनि आये उसने पृथ्वी जीतली.
मृगेंद्रपुराण |
श्रवणोनर गोराजा मयूरः कुंजरोवृषः। प्रस्थानेचप्रवेशे वा सर्वसिद्धिकरामताः । पद्मिनी राजहंसश्च निर्मथाश्च तपोधनाः। यंदेशमपाश्रयंति तत्रदेशे सखं भवेत ।
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