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तत्त्वनिर्णयप्रासाद
है, जो ब्रह्मका चौथा अंश है, सो मायामें आकर देवतिर्यगादिरूपकरके विविध प्रकारका हुआ थका व्याप्त हुआ. क्या करके ? चेतन अचेतन रूपकरके, सोही दिखाते हैं; तिस आदि पुरुषलें विराट्, अर्थात् ब्रह्मांड उत्पन्न भया, तिसमें जीवरूपकरके प्रवेशकरके ब्रह्मांडाभिमानी देवात्मा जीव होता भया, पीछे विराट्वें व्यतिरिक्त देव तिर्यङ् मनुष्यादिरूप होता भया, पीछे देवादि जीवभावसें भूमिको सृजन करता भया, अथ भूमिसृष्टिके अनंतर तिन जीवोंके शरीर रचता भया, शरीरोंके उत्पन्न हुए थके देवते, उत्तर सृष्टिकी सिद्धिवास्ते बाह्यद्रव्यके अनुत्पन्न होनेसें हविके अंतर असंभव होनेसें पुरुषस्वरूपही मनः करी हविपणे संकल्पकरके पुरुषनामक हविकरके मानस यज्ञका विस्तार करते भए; तिस अवसरमें तिस यज्ञका वसंत ऋतु घृत होता भया, ग्रीष्म ऋतु इध्म होता भया, शरतु हव होता भया, अर्थात् तिसकोंही पुरोडाशाभिध हविकरके कल्पन करते भए; यज्ञका साधनभूत पुरुष तिसकों पशुत्वभावनाकर के यूपमें बांधते हुए, बर्हिषि मानस यज्ञमें प्रोक्षण करता भया, कैसा पुरुष ? सर्वसृष्टिसें पहिले उत्पन्न भया, तिस पशुरूप पुरुषकरके देवते पूजते भए, मानस यज्ञ निष्पन्न करते भए. कौन ते देवते ? सृष्टिके साधन योग्य प्रजापति - प्रभृति, तिनके अनुकूल ऋषिमंत्रों के देखनेवाले यजन करते सर्वहुत पुरुषसें अर्थात् मानस यज्ञसें दधिमिश्रित घृत संपादन संबधी लोकमें प्रसिद्ध हरिणादि आरण्य पशुयोंकों उ पशु गौआदि तिनकों उत्पन्न करता भया, तिस यज्ञ ऋच् साम उत्पन्न भए, तिससेंही गायत्र्यादि छंद उत्पन्न भए, तिस यज्ञसेंही यजुर्वेद होता भया, तिससेंही अश्व घोडे गर्दभ खच्चरां उत्पन्न भए, तिस यज्ञसें गौयां बकरीयां भेर्डे उत्पन्न भई; प्रजापतिके प्राणरूप देवते जब विराट्रूप पुरुषकों उत्पन्न करते भए, तब तिस पुरुषका मुख क्या होता भया ? दोनों बाहु क्या होते भए ? ऊरु क्या होते भए ? पग क्या होते भए ? (उत्तर) ब्राह्मणत्व जातिविशिष्टपुरुष मुखसें उत्पन्न हुए, क्षत्रियत्वजातिविशिष्ट पुरुष बाहोंसें उत्पन्न भए, ऊरु - साथलोंसें वैश्य, और पगोंसें शूद्र उत्पन्न भए.
वायु देवती भया, ग्राम्य
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