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________________ अष्टमस्तम्भः । यह जगत् रचा है, और धारण भी परमात्माही करता है। और यजुर्वेदमें यह उत्तर दिया है कि, और्णनाभिकीतरें जगत् रचता है. । ऋग्वेदसें यह अधिक कहा है, और्णनाभिके दृष्टांतकों तो हम ऊपर खंडन कर आए हैं, और शेष उत्तर तो, श्रुति कहनेवालेकी प्रिय स्त्रीही मानेगी परंतु प्रेक्षावान् तो कोई भी नहीं मानेगा. क्योंकि, जवतांइ परमात्मा सर्व सामर्थ्यवान् उपादानादि सामग्रीविना अपनी महिमासें जगत् रचनेवाला सिद्ध न होवेगा, तबताइ यह जगत् विना उपादान निमित्तकारणोंसे आकाशादि अपेक्षाकारणके विनाही ईश्वरका रचा हुआ है, ऐसा सिद्ध नहीं होवेगा. और जबताइ यह जगत् विना उपादान निमित्तकारणोंसें आकाशादि अपेक्षाकारणके विनाही ईश्वरका रचा हुआ सिद्ध नही होवेगा, तबतांइ परमात्मा सर्वसामर्थ्यवान् उपादानादिसामग्रीविना अपनी महिमासें जगत् रचनेवाला सिद्ध नही होवेगा. यह इतरेतराश्रय दूषण है; इसवास्ते ऊपर लिखी श्रुतियोंमें जो सृष्टिबाबत कथन है, सो भी प्रलापमात्रही है. इसवास्तेही अक्षपाद, गौतममुनिनें वेदोंकों अप्रमाणिकपणा मानकेही न्यायसूत्रोंमें, और कणादमुनिनें वैशेषिकसूत्रों। आकाशको नित्य, और सर्वव्यापक माना. और दिशा, आत्मा, मन, काल और पृथिवीआदि भूतोंके परमाणुयोंका नित्य माने. इत्यादि जो वेद विरुद्ध प्रक्रिया रची, सो वेदकी प्रक्रियाको अप्रमाणिक मानकेही रची सिद्ध होती है. और जैमिनीने अपने मीमांसाशास्त्रमें जगत्को अनादि माना है, ईश्वर सर्वज्ञ सृष्टिका कर्ता मान्याही नही है. वो भी तो, श्रीव्यासजीकाही शिष्य था, और मुख्य सामवेदी यही था; तिसने तो, ईश्वरविषयक मंडल, अष्टक, अध्याय, अनुवाक, सूक्त, सर्व नवीन प्रक्षेपरूप मानके प्रमाणिक नही माने हैं. इसवास्ते वेदोक्त सृष्टि रचना अज्ञानीयोंकी कल्पना करी हुइ है, इसवास्ते वेदका कथन सत्य नही है. अथ ऋग्वेद अष्टक ८ अध्याय ४ की श्रुतियोंमें जो सृष्टिक्रम लिखा है, तिसकी भी यत्किंचित् समीक्षा लिखते हैं. चौथे अंककी श्रुतिसें लिखा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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