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________________ अर्थः-तीनलोकमें प्रतिष्ठित श्री ऋषभदेवसे आदि लेकर श्री बर्द्धमानस्वामी तक चौवीस तीर्थकरों ( तीर्थोकी स्थापन करनेवाले ) है, उन सिद्धोंकी शरण प्राप्त होता हूं। ॥ यजुर्वेद । ॥ ॐ नमोऽर्हन्तो ऋषभो ॥ अर्थः--अर्हन्त नाम वाले ( वा ) पूज्य ऋषभदेवको प्रमाण हो. फिर ऐसा कहा हैःॐ ऋषभंपवित्रं पुरहूतमध्वरं यज्ञेषु ननं परमं माहसंस्तुतं वारं शत्रुजयंतं पुशुरिंद्रमाहुरिति स्वाहा । उन्नातारमिन्द्रं ऋषभंवदंति अमृतारमिन्द्रहवे सुगतं सुपार्श्वमिन्द्रंहवे शक्रमजितं तदूर्द्धमान पुरुहूतमिंद्रमाहुरिति स्वाहा । ॐ स्वस्तिनः इन्द्रो वृद्धश्रवा स्वस्तिनः पूषा विश्ववेदाः स्वस्तिनस्ता अरिष्टनोमिः स्वस्तिनो बृहस्पतिर्दधातु । दीर्घायुस्त्वायवलायुर्वाशुभजातायु ॐ रक्षरक्षअरिष्टनेमि स्वाहा वामदेव सांत्यर्थ मनुविधीयते सोऽस्माक अरिष्टनेमि स्वाहा ॥ अर्थः-ऋषभदेव पवित्रको और इन्द्ररूपी अध्वरको यज्ञोंमें नमको पशु वैरकेि जीत नेवाले इंद्रको आहुती देता हूं । रक्षा करनेवाले परम ऐश्वर्ययुक्त और अमृत और सुगत सुपाचे भगवान जिस एसे पुरुहुत ( इन्द्र) को ऋषभदेव तथा वर्धमान कहते हैं उसे हवि देता हूं। वृद्धश्रवा (बहुत धनवाला ) इन्द्र कल्याण करे, और विश्ववेदा सूर्य हमें कल्याण करै, तथा अरिष्टनेमि हमें कल्याण करे और बृहस्पति हमारा कल्याण करे। ( यजुर्वेद अध्याय २५ मं० १९) दीर्घायुको और बलको और शुभ मंगलको दे। और हे अरिष्टनेमि महाराज हमारी रक्षा कर (२)॥ वामदेव शान्तिके लिये जिसे हम विधान करते हैं वह हमारा अरिष्टनेमि है. उसे हवि देते हैं. भावार्थ:-श्री ऋषभदेव श्री सुपार्श्व भगवान और अजितनाथ भगवान और अरिष्टनेमि आदि भगवान यह सब जैनियोंके तीर्थकर हैं जिनकी मूर्ति जैनी लोग बनाते हैं और भक्ति करते हैं । ॥ भागवत ग्रंथ ॥ एवमनुशास्यात्मजान्खयमनुशिष्टान्नपिलोकानुशासनाथमहानुभावः परमसुहृद् भगवान् ऋषभापदेशः उपशमशीलानामुपरतकर्मणां महामुनीना भक्तिज्ञानवैराग्यलक्षणं पारमहंस्यधर्ममुपशिक्षमाणः स्वतनयशतज्येष्ठं परमभागतं भगवजनपरायणं भरतं धराणिपालनायाभिषिच्य स्वयं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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